कोटालपोखर।
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज देव…, हे छठी मईया दर्शन दीहीं ना आपन…, उगीहें सुरुज गोसइयां हो… जैसे मधुर छठ गीतों से पूरा कोटालपोखर और आसपास का इलाका भक्तिमय हो उठा है। गांव की गलियों और घाटों पर गूंजते छठ गीतों ने माहौल को पूर्ण रूप से आस्था और श्रद्धा से सराबोर कर दिया है।
स्थानीय बाजारों में छठ पूजन सामग्रियों की खूब खरीदारी हो रही है। सूप, दउरा, नारियल, आम की लकड़ी, मिट्टी के चूल्हे, घी, फल आदि वस्तुओं की खरीद के लिए महिलाओं की भीड़ देखी जा रही है। छठ महापर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। सीमित सुविधाओं और कठिन व्रत नियमों के बावजूद व्रतियों में अटूट श्रद्धा और ऊर्जा देखने को मिल रही है।
महाभारत काल से होती आ रही है सूर्य उपासना
मान्यता है कि छठ पूजा की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। कहा जाता है कि महारानी कुंती ने सूर्य देव की आराधना कर कर्ण को जन्म दिया था। इसी से प्रेरित होकर सूर्य उपासना की यह अनूठी परंपरा आरंभ हुई। मान्यता यह भी है कि छठ देवी, भगवान सूर्य की बहन हैं। अतः भक्त जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं ताकि जीवन में सुख, समृद्धि और संतति की प्राप्ति हो।
छठ पूजा के दौरान कोशी भरने की परंपरा का भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि जब किसी की मनौती पूरी होती है तो 12 गन्नों के समूह से एक मंडप बनाकर उसके नीचे मिट्टी का बड़ा घड़ा रखा जाता है, जिस पर छह दीपक जलाए जाते हैं। बाद में इसी विधि से नदी या तालाब किनारे सूर्य देव की आराधना की जाती है।
भक्ति, अनुशासन और आस्था के संगम से कोटालपोखर का वातावरण इस समय पूरी तरह छठमय हो गया है।