दीपावली में अब भी जीवित है घरौंदा बनाने की परंपरा,बहनें सजाती हैं‘घरकुंडा’लक्ष्मी पूजन के लिए

दीपावली में अब भी जीवित है घरौंदा बनाने की परंपरा,बहनें सजाती हैं‘घरकुंडा’लक्ष्मी पूजन के लिए

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दीपावली में अब भी जीवित है घरौंदा बनाने की परंपरा,बहनें सजाती हैं‘घरकुंडा’लक्ष्मी पूजन के लिए

बरहरवा।
आधुनिकता के दौर में भी दीपावली की पारंपरिक खुशबू गांव और कस्बों में आज भी बरकरार है। दीपावली पर घरों की रौनक के साथ-साथ घरौंदा (घरकुंडा) बनाने की परंपरा आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। विशेषकर लड़कियों में घरौंदा बनाने की होड़ दीपावली के दिनों में देखने को मिलती है।

दीपावली की पूर्व संध्या पर ईंट, मिट्टी और गोबर से छोटे-छोटे घर बनाकर उन्हें रंग-बिरंगे रंगों से सजाया जाता है। कई जगहों पर महिलाएं और लड़कियां मिट्टी के घरों में दीप जलाती हैं और उसमें लड्डू, बताशा, मूढ़ी, धान का लावा रखती हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से घर में धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

समय के साथ परंपरा में बदलाव जरूर आया है। अब शहरी इलाकों में रेडीमेड घरकुंडा बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। लोग इन्हें बिजली की झालरों और फूलों से सजाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं।

बोरियो बाजार नमस्ते रोड की सुप्रिया, नेहा, रुपम, दीपा, स्वीटी और श्रेया ने बताया कि वे हर साल घरकुंडा सजाकर अपने भाइयों की समृद्धि और खुशहाली की कामना करती हैं। दीपावली की रात वे घरकुंडा में दीपक जलाकर चुकड़ी में मिठाई, मूढ़ी और धान के लावा रखती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में इस परंपरा को लेकर उत्साह और भी ज्यादा देखने को मिलता है। गांवों में लड़कियों के बीच यह एक प्रकार की सांस्कृतिक प्रतियोगिता बन जाती है कि कौन सबसे सुंदर और आकर्षक घरकुंडा बनाता है।

स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि घरौंदा बनाने की यह परंपरा न केवल लक्ष्मी पूजन से जुड़ी है, बल्कि यह सृजन, प्रेम और परिवार की समृद्धि का प्रतीक भी है। यह परंपरा झारखंड की लोक संस्कृति की जीवंत झलक पेश करती है।

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