बोकारो।
स्वांग वासरी सैलरी के मजदूरों के स्थायीकरण और नियोजन को लेकर यूनियन नेता मुमताज आलम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राज्य सरकार से त्वरित कार्रवाई की मांग की। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मंत्री योगेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप पर बोकारो उपायुक्त अजय नाथ झा को निर्देश दिया गया था कि भूख हड़ताल पर बैठे मजदूरों से वार्ता कर आंदोलन समाप्त कराया जाए तथा प्रबंधन से लिखित आश्वासन लिया जाए।
इसके बाद प्रबंधन ने मजदूरों से आवेदन लेना शुरू किया। पहले लॉट में 20 मजदूर और दूसरे लॉट में 16 मजदूरों ने आवेदन जमा किया। वार्ता के अनुसार सीसीएल प्रबंधन ने एक माह के भीतर अवार्डी मजदूरों को नियोजन देने का आश्वासन दिया था।
यूनियन नेता ने बताया कि मजदूरों के स्थायीकरण को लेकर मामला पहले उप श्रमायुक्त हजारीबाग में दर्ज कराया गया था, जो बाद में सीजीआईटी धनबाद भेजा गया। केस संख्या 5/12 में 3 अक्टूबर 1996 को मजदूरों के पक्ष में फैसला आया। लेकिन सीसीएल प्रबंधन ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने भी मजदूरों के पक्ष में निर्णय दिया, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
हालांकि, मजदूरों की पहचान को लेकर विवाद खड़ा हुआ। पहचान की जिम्मेदारी हाई कोर्ट ने रजिस्ट्रार को दी, जिसके तहत 4 अगस्त 2009 को “सेंडल ऑफ मेमोरियल” तैयार किया गया। इसके बाद मजदूरों की पहचान यूनियन के माध्यम से कराई जानी थी, लेकिन यहीं से मामला फर्जीवाड़े में बदल गया।
मुमताज आलम ने आरोप लगाया कि वर्ष 2009 के अंत में बड़े पैमाने पर फर्जी पहचान की गई — जैसे महेंद्र रजक की जगह लक्ष्मण महतो, बटकी बाई की जगह गुरबाई की पहचान की गई। कुल 324 मजदूरों की गलत फोटो और कागजात लगाकर सीसीएल मुख्यालय भेजे गए।
वर्ष 2010 में जब सीसीएल ने बहाली प्रक्रिया शुरू की, तो वास्तविक मजदूरों ने इसका जमकर विरोध किया। यूनियन नेता ने सरकार से इस फर्जीवाड़े की उच्चस्तरीय जांच कराने और असली मजदूरों को न्याय दिलाने की मांग की।