झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर अवस्थित कसमार प्रखंड की सेवाती घाटी न सिर्फ एक सुंदर प्राकृतिक स्थल है, बल्कि यह क्षेत्रीय आस्था, लोकजीवन और सीमा-इतिहास का जीवंत प्रतीक भी है। घने जंगलों, ऊंचे पहाड़ों और बहते झरनों के बीच बसी यह घाटी अपने प्राकृतिक सौंदर्य और लोकपरंपराओं के लिए प्रसिद्ध है।
अंतरराज्यीय सीमा पर होने के कारण यह स्थल झारखंड और बंगाल, दोनों राज्यों के लोगों के लिए समान रूप से आकर्षण का केंद्र है।
हर साल नववर्ष और मकर संक्रांति के अवसर पर यहां भारी भीड़ उमड़ती है। लोग परिवार और मित्रों के साथ पिकनिक मनाने, घूमने-फिरने और घाटी की वादियों में सुकून पाने आते हैं।
लगभग 200 फीट ऊंचाई से गिरता झरना यहां की प्रमुख पहचान है। यह झरना, जिसे स्थानीय लोग मुचरीनाला कहते हैं, दोनों राज्यों की प्राकृतिक सीमा तय करता है। झरना से बहता जल पश्चिम बंगाल में जाकर मिलता है। विशेषज्ञों का मत है कि यदि यहां एक चेक डैम बनाया जाए तो दोनों राज्यों के सीमावर्ती गांवों की सिंचाई की समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है,
लेकिन अब तक प्रशासन ने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया है।
कई दशक पहले तक यह घाटी अत्यंत दुर्गम थी। केवल पगडंडियों से होकर गुजरना संभव था। 2001-02 में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों ने श्रमदान से मार्ग तैयार किया, जिससे लोगों का आना-जाना संभव हुआ। वर्ष 2017-18 में सड़क निर्माण के बाद अब वाहन से भी यहां पहुंचना आसान हो गया है।
इस मार्ग के बन जाने से कसमार से झालदा की दूरी लगभग आधी रह गई, जिससे न केवल व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ीं, बल्कि क्षेत्र का पर्यटन भी विकसित हुआ। झालदा का प्रसिद्ध पशु बाजार और धार्मिक स्थल कड़ियर बाबा मंदिर अब इस घाटी के रास्ते और सुलभ हो गए हैं।
सेवाती घाटी केवल प्राकृतिक नहीं, धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। स्थानीय मान्यता है कि कभी इस घाटी की एक गुफा में दो साधु तपस्या करते थे।
करीब पाँच-छह दशक पहले पाड़ी गांव के निवासी स्वर्गीय घासीराम महतो ने भी कुछ माह इन साधुओं के साथ रहकर तप किया था। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद एक साधु ने वहीं देह त्याग दिया और दूसरा अंतर्ध्यान हो गया। मान्यता है कि यह गुफा बंगाल के तुलिन क्षेत्र तक जाती थी, लेकिन अब चट्टान खिसकने से यह गुफा धंस चुकी है और प्रवेश मार्ग बंद हो गया है।
हर वर्ष मकर संक्रांति पर यहां भव्य टुसू मेला आयोजित होता है, जो अब इस इलाके का सबसे बड़ा लोकमहोत्सव बन चुका है। पहली बार 1985 में इस घाटी में टुसू विसर्जन हुआ, जब बारिश के कारण मुरहुल गांव की युवतियां मृगखोह नहीं जा सकीं और स्थानीय ग्रामीण रामेश्वर महतो, भिखु महतो व सहदेव महतो की पहल पर घाटी के झरने में टुसू विसर्जन कराया गया। अगले वर्ष 1986 में आयोजित बैठक में यह तय हुआ कि हर वर्ष यहां टुसू मेला लगाया जाएगा।
समय के साथ यह मेला प्रसिद्ध हुआ और अब इसमें सैकड़ों टुसू और हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। पहले यह मेला एक दिन का होता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसे तीन दिवसीय स्वरूप दिया गया है।
2024 में घाटी के झारखंड वाले हिस्से में 108 लघु रुद्र महायज्ञ के साथ शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की गई, जिससे इस स्थान का धार्मिक महत्व और बढ़ गया।
उसी वर्ष सेवाती बाबा मंदिर में बकरा बलि की परंपरा भी शुरू हुई, जहां श्रद्धालु सप्ताह के किसी भी दिन पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
सेवाती घाटी की पश्चिम दिशा में लगभग एक किलोमीटर दूर घने जंगल में एक चट्टान पर उभरा गाय का पदचिह्न भी दर्शनीय है। लोग इसे कामधेनु (कोपला गाय) का चिन्ह मानते हैं और दर्शन-पूजन के लिए पैदल वहां तक जाते हैं।
यह घाटी केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि त्रिभाषीय (खोरठा, कुड़माली और पंचपरगनिया) और त्रिजिलाई सीमा (पुरूलिया, बोकारो, रामगढ़) का मिलनबिंदु भी है। 2023 में बंगाल फॉरेस्ट विभाग द्वारा यहां सीमा विवाद खड़ा करने की कोशिश की गई थी, परंतु ‘प्रभात खबर’ की रिपोर्टिंग और बोकारो प्रशासन की सक्रियता से यह स्पष्ट हुआ कि झरना तक का इलाका झारखंड की सीमा में आता है।
कसमार प्रखंड मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेवाती घाटी तक मंजूरा, खैराचातर, खुदीबेड़ा, पिरगुल और मुरहुलसूदी होते हुए पहुंचा जा सकता है। प्रकृति, लोकपरंपरा, और इतिहास का संगम यह घाटी आज कसमार का सबसे रमणीय और गौरवशाली स्थल बन चुकी है।