घाघरा में ड्रग्स माफिया बेलगाम कौन दे रहा है ड्रग्स माफिया को संरक्षण

घाघरा में ड्रग्स माफिया बेलगाम कौन दे रहा है ड्रग्स माफिया को संरक्षण

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घाघरा में ड्रग्स माफिया बेलगाम कौन दे रहा है ड्रग्स माफिया को संरक्षण

शिक्षा संस्कार एवं खेल नगरी के रूप में अपनी पहचान रखने वाला गुमला जिले का घाघरा प्रखंड धीरे-धीरे अपनी पहचान खोते हुए नशे वाले प्रखंड के रूप में अपनी नई पहचान बनाते जा रहा है। यहां के युवा न्यायपालिका, प्रशासनिक एवं खेल जगत के अनेकों ऊंचे ऊंचे पदों पर रहते हुए अपने राज्य एवं प्रखंड का नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन समय का पहिया ऐसा घुमा की आज के युवा नशे का जहर पीने में लगे हुए है।

जानलेवा पदार्थ की बिक्री में छोटा सा प्रखंड घाघरा बड़े-बड़े शहरों से आगे निकल चुका है

प्रखंड के हर गली एवं मोहल्ले में मादक द्रव्यों की बिक्री खुले आम हो रही है। बिना रोक टोक बहुत ही आसानी से गांजा , ब्राउन शुगर एवं अन्य नशे का समान मिल जाता है। आसानी से उपलब्ध होने के कारण ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के युवाओं में नशे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है।मादक द्रव्य गांजा एवं ब्राउन शुगर जैसे जानलेवा पदार्थ की बिक्री में छोटा सा प्रखंड बड़े-बड़े शहरों से आगे निकल चुका है। दर्जनों की संख्या में इसको बेचने वाले प्रखंड एवं गांवों में सक्रिय हैं।

समय रहते अगर इन्हें नहीं रोका गया तो ग्रामीण क्षेत्र के युवा भी इस जानलेवा नशे के दलदल में फंसते चले जाएंगे

घाघरा प्रखंड एक गरीब एवं आदिवासी बहुल इलाका है यहां के लोग बहुत ही अच्छे एवं सीधे साधे हैं। ये लोग मेहनत मजदूरी कर अपना एवं अपने परिवार का भरण पोषण करते है।ड्रग्स माफिया तेजी से गांवों तक अपने नेटवर्क को बढ़ाने में लगे हैं।अगर समय रहते इन्हें नहीं रोका गया तो ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले सीधे-साधे युवकों को भी जानलेवा नशे की दलदल में धकेल देंगे।

नशे के व्यापारियों में पुलिस का बिल्कुल भी डर नहीं

नशे के व्यापारियों में पुलिस का डर बिल्कुल ही नहीं है पुलिस उनके सामने बिल्कुल लाचार और बेबस है।पुलिस की मौन ने इन्हें तेजी से फलने फूलने का मौका दे दिया है। जिस भी परिवार के बच्चे नशे के आदी हो गए हैं वैसे लोग डर एवं लोक लाज के कारण कारण अपना दुख भी किसी से नहीं बता पा रहे है। वे लोग केवल भगवान के भरोसे जीवन जीने को विवश है इसी आस में की कोई चमत्कार हो जाए और उनके बच्चे फिर से सुधर जाए।

महानगरों की तर्ज पर अपने-अपने क्षेत्र का बंटवारा कर लिए है

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यह लोग शहरों एवं महानगरों की तर्ज पर अपने-अपने इलाके का बंटवारा कर लिया है। जो जिसका क्षेत्र है वह उसी इलाके में माल बेचेगा। स्थिति की गंभीरता का मामला इसी से लगाया जा सकता है कि आज का युवा वर्ग किस दिशा मे जा रहा है।

जागरूकता अभियान का नहीं पढ़ रहा है कोई असर

समय-समय पर प्रशासन एवं सामाजिक संगठनों के द्वारा नशे के उन्मूलन के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है लेकिन इनका असर उनके ऊपर बिल्कुल दिखाई नहीं दे रहा है।

बॉक्साइट नगरी के रूप में पहचान रखने वाला क्षेत्र मौत की नगरी के रूप में पहचान बनाने लगा है

जानलेवा नशे की लत के कारण प्रखंड क्षेत्र के दर्जनों युवा असाध्य एवं जानलेवा बीमारियों की चपेट में तेजी से आ रहे हैं। पहले भी कई लोग नशे के कारण मौत के मुंह में जा चुके है।किसी ने अपने बेटे को खो दिया तो किसी ने अपने पति को। बॉक्साइट की नगरी के रूप में पहचान रखने वाला यह क्षेत्र धीरे-धीरे मौत की नगरी के रूप में अपनी नई पहचान बनाने लगा है।

पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती ड्रग्स सप्लाई को रोकना

इसकी रोकथाम के लिए जरूरत है प्रशासनिक , राजनीति एवं सामाजिक स्तर पर एक सामूहिक एवं ईमानदारी पूर्ण प्रयास की। पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती ड्रग्स के सप्लाई लाइन को काटना है एवं स्थानीय स्तर पर ऐसेलोगों की पहचान करना है जो लोग इसे युवाओं तक आसानी से पहुंचा रहे हैं। गुमला लातेहार गढ़वा जैसे शहरों से माल लाकर प्रखंड एवं आस पास के गांवों में अपने नेटवर्क के माध्यम से बेच रहे है। थोड़ी सी मेहनत में इन्हें मोटी कमाई हो जाती है।

एक चुटकी ब्राउन शुगर की कीमत 500 से ₹700 के बीच में है ।बेरोजगार युवक इतना पैसा कहा से लायेंगे। निश्चित रूप से यह लोग अपनी जरूरत को पूरी करने के लिए लूटपाट चोरी एवं अपराध जैसे संगीत जुर्म का ही सहारा लेंगे। सबसे चिंता की बात ये है कि स्कूली एवं कम उम्र के बच्चे इनकी चाल में तेजी से फंस रहे हैं। शुरुआती दिनों में माफिया ऐसे बच्चों को फ्री में पिलाते हैं आदत बन जाने के बाद मोटी रकम की वसूली करते हैं।

घाघरा एक छोटा सा प्रखंड है मादक द्रव्य के तस्करों का कद अभी इतना नहीं बढ़ा है कि यह लोग सीधा पुलिस को चुनौती और चकमा दे सके। चिंता की बात यह है कि युवा तेजी से नशे की आदी हो रहे हैं साथ ही खतरनाक एवं असाध्य बीमारियों के शिकार। आखिर इसके लिए जिम्मेवार कौन है परिवार समाज या वर्तमान सिस्टम ?

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