
अमीन अंसारी,
रांची:– झारखंड के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे ने राज्य के निजी विद्यालयों की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी किए गए आदेश पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने 2019 में आरटीई (Right to Education) एक्ट में किए गए संशोधन के माध्यम से झारखंड के छोटे निजी विद्यालयों के खिलाफ एक कुटिल साजिश रची थी, जिसका उद्देश्य राज्य की शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करना था।
इस साजिश को तब असफल कर दिया गया था, जब झारखंड सरकार ने अपने विवेक से फैसला लेते हुए इन विद्यालयों को बचाया। अब एक बार फिर केंद्र सरकार के इशारे पर राज्य में इन विद्यालयों को मान्यता देने के लिए पुनः आवेदन करने का आदेश जारी किया गया है, जो पूरे राज्य की शिक्षा व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।
आलोक कुमार दूबे ने इस मुद्दे पर अपनी चिंता जताते हुए कहा कि झारखंड के छोटे निजी विद्यालयों में लाखों दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जो राज्य के शिक्षा तंत्र की नींव का हिस्सा हैं। ये विद्यालय ना केवल शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, बल्कि राज्य के लाखों लोगों को रोजगार के अवसर भी दे रहे हैं।
ऐसे में केंद्र सरकार का यह आदेश इन विद्यालयों को बार-बार मान्यता के लिए आवेदन करने को बाध्य करता है, जो ना केवल बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करेगा, बल्कि इन विद्यालयों के संचालकों और कर्मचारियों की आजीविका को भी खतरे में डाल सकता है।
आलोक कुमार दूबे ने यह स्पष्ट किया कि जब झारखंड एकेडमिक काउंसिल (JAC) ने इन विद्यालयों को आठवीं कक्षा तक शिक्षा देने की मान्यता दी है, तो फिर क्यों बार-बार मान्यता के लिए आवेदन की आवश्यकता है?
उनका कहना था कि जब यू डाइस (U-DISE) के तहत इन विद्यालयों को स्कूल कोड और स्कूल नंबर प्राप्त हो चुका है, तो फिर से उन्हें मान्यता देने की प्रक्रिया को क्यों दोहराया जा रहा है? दूबे ने कहा कि केंद्र सरकार का यह कदम केवल निजी विद्यालयों के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था को भी कमजोर कर देगा।
उन्होंने झारखंड सरकार से आग्रह किया कि वह 2019 में किए गए आरटीई एक्ट के संशोधनों को रद्द कर दे और राज्य के निजी विद्यालयों को बिना किसी अतिरिक्त शर्त के मान्यता प्रदान करें। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य के निजी और सरकारी विद्यालयों के संचालन के लिए एक ही नियम होना चाहिए।
जब पूरे देश में आरटीई एक्ट के तहत 2009 में किसी भी विद्यालय को मान्यता देने की प्रक्रिया तय की गई है, तो झारखंड में केवल निजी विद्यालयों के लिए क्यों कड़ी शर्तें लागू की जा रही हैं? आलोक दूबे ने राज्य सरकार से यह अपील की कि वह इस मामले में समझदारी से काम ले और केंद्र सरकार की साजिशों से राज्य की शिक्षा व्यवस्था को बचाए। उन्होंने यह भी कहा कि निजी विद्यालयों को डरने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यदि ये विद्यालय पहले से मान्यता प्राप्त हैं, तो उन्हें पुनः आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।
शराब का ठेका या अफीम की खेती नहीं कर रहे निजी विद्यालय:
आलोक कुमार दूबे ने इस अवसर पर निजी विद्यालयों के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “निजी विद्यालयों का काम केवल शिक्षा देना नहीं है, बल्कि वे समाज को रोजगार और अवसर भी प्रदान कर रहे हैं।
यह उनका सबसे बड़ा पुण्य है, और सरकार को उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि निजी विद्यालयों को शराब का ठेका या अफीम की खेती करने के बजाय बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का काम किया जा रहा है, और यह सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। उन्होंने राज्य सरकार से अपील की कि वह इन विद्यालयों के खिलाफ कोई भी निर्णय लेने से पहले यह समझे कि ये विद्यालय किस तरह से राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
केंद्र की साजिश के खिलाफ राज्य सरकार को लेना होगा कड़ा कदम:
आलोक दूबे ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार द्वारा झारखंड के निजी विद्यालयों को मान्यता देने के लिए बार-बार आवेदन करने का आदेश एक योजनाबद्ध साजिश का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य राज्य की शिक्षा व्यवस्था को अस्थिर करना है। उनका कहना था कि इस आदेश से न केवल निजी विद्यालयों के संचालन में रुकावट आएगी, बल्कि हजारों बच्चों की शिक्षा पर भी असर पड़ेगा। उन्होंने झारखंड सरकार से यह अपील की कि वह इस मामले में केंद्र सरकार के दबाव में आकर जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें।
बल्कि, एक ठोस और समझदारी से विचार कर निर्णय लें ताकि राज्य की शिक्षा व्यवस्था मजबूत बनी रहे और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलती रहे। झारखंड के निजी विद्यालयों को मान्यता देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश राज्य की शिक्षा व्यवस्था के लिए एक चुनौती बन चुका है। आलोक कुमार दूबे की चिंता यह है कि इस आदेश के चलते लाखों बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो सकती है और राज्य की शिक्षा नीति कमजोर हो सकती है।
उन्होंने झारखंड सरकार से इस मामले में समझदारी से निर्णय लेने की अपील की है ताकि राज्य की शिक्षा व्यवस्था मजबूत बनी रहे और बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलती रहे। राज्य सरकार को इस मुद्दे पर एक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि केंद्र की साजिशों से बचकर झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को सही दिशा में आगे बढ़ाया जा सके।