
सतबरवा(पलामू):- सतबरवा प्रखंड क्षेत्र सहित कई गांवों में महिला सुहागिन ने की वट सावित्री पूजा ,पूजा के उपरांत पूजा में भाग लिए महिलाओं ने वट में मौली धागा बांध कर अपने पति के लिए रक्षा की दुआ करते हैं।
व्रत की कथा में किनकी है कहानी
सावित्री और सत्यवान की कहानी है, जो हिंदू धर्म में सौभाग्य और पति की लंबी उम्र के लिए महत्वपूर्ण है। यह कथा सुनने से पता चलता है कि ,सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाने के लिए कठोर तपस्या किया। व्रत निर्जल रहकर किया, जिससे यमराज भी प्रभावित हुए।
कथा का खानी
एक राजा अश्वपति और रानी मालवती की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने सावित्री देवी की तपस्या की और पुत्री प्राप्त हुई। जिसका नाम सावित्री नामक था।सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया, लेकिन सत्यवान की आयु आधी थी, जैसा कि नारद जी ने सावित्री को बताया था। सत्यवान की मृत्यु के बाद, सावित्री यमराज के पास गई और सत्यवान के प्राण वापस मांग लिए।
सावित्री की दृढ़ता और पति के प्रति प्रेम से यमराज प्रभावित हुए और सत्यवान के प्राण वापस कर दिए। सावित्री ने यमराज से अपने सास-ससुर को दृष्टि प्राप्त करने, खोया हुआ राज्य वापस पाने और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान माँगा।
वट सावित्री व्रत का महत्व:
यह व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है, अ अमर उजाला के अनुसार। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत करती हैं। वट वृक्ष की पूजा की जाती है, क्योंकि सावित्री ने बरगद के वृक्ष के नीचे सत्यवान के प्राण वापस पाए थे। इसी लिए हिंदू रीति रिवाज के महिलाएं इस दिन वट सावित्री व्रत कथा को सुनने और पूजा के लिए बरगद के पेड़ के पास जाती है।