छत्रपति संभाजी नगर में उर्दू में रामायण-महाभारत की बढ़ी मांग, औरंगजेब की कब्र पर विवाद के बीच उठी भारतीय संस्कृति जानने की लहर

छत्रपति संभाजी नगर में उर्दू में रामायण-महाभारत की बढ़ी मांग, औरंगजेब की कब्र पर विवाद के बीच उठी भारतीय संस्कृति जानने की लहर

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छत्रपति संभाजी नगर में उर्दू में रामायण-महाभारत की बढ़ी मांग, औरंगजेब की कब्र पर विवाद के बीच उठी भारतीय संस्कृति जानने की लहर

छत्रपति संभाजी नगर (महाराष्ट्र) – जहां एक ओर औरंगजेब की कब्र को लेकर छत्रपति संभाजी नगर (पूर्व में औरंगाबाद) सुर्खियों में है, वहीं दूसरी ओर शहर में उर्दू भाषा में रामायण, महाभारत और अन्य सनातनी ग्रंथों की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है। यह दृश्य भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और सांस्कृतिक समावेशिता का जीवंत उदाहरण बनकर उभर रहा है।

छत्रपति संभाजी नगर की कैसर कॉलोनी में मिर्जा अब्दुल कय्यूम नदवी द्वारा संचालित “मिर्जा वर्ल्ड बुक हाउस” इन दिनों चर्चा का केंद्र बन गया है। यह दुकान बीते दो दशकों से धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक पुस्तकों के विक्रय का केंद्र रही है। खास बात यह है कि यहां उर्दू में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस, महर्षि वाल्मीकि की रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, शिवपुराण, विष्णु पुराण, ऋग्वेद और अन्य ग्रंथों के संस्करण बड़ी संख्या में बिक रहे हैं।

सभी समुदायों के बीच लोकप्रियता

मिर्जा कय्यूम बताते हैं कि इन पुस्तकों को खरीदने वालों में केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि उर्दू जानने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल हैं। “लोगों में भारतीय संस्कृति, सभ्यता और धर्मग्रंथों को समझने की ललक बढ़ी है। ये किताबें केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और दार्शनिक दृष्टि से भी ज्ञानवर्धक हैं,” उन्होंने कहा।

वे बताते हैं कि कई मुस्लिम ग्राहक रामायण और भगवद्गीता जैसी पुस्तकों को इसलिए खरीदते हैं ताकि वे राम, कृष्ण और अन्य पात्रों की जीवनकथा को समझ सकें। इससे न केवल एक दूसरे के धर्म के प्रति सम्मान बढ़ता है, बल्कि पारस्परिक सद्भाव भी मजबूत होता है।

बेटी की प्रेरणा से बने ‘ज्ञान सेतु’

मिर्जा कय्यूम की इस पहल में उनकी बेटी मरियम मिर्जा का अहम योगदान रहा है। मरियम की प्रेरणा से उन्होंने 30 से अधिक छोटे पुस्तकालयों की स्थापना की, जहां बच्चों को पढ़ने की आदत डाली जाती है। ये पुस्तकालय विभिन्न समुदायों के बच्चों के लिए खुले हैं और इनमें धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक किताबें उपलब्ध हैं।

दाराशिकोह से देहाती पुस्तक भंडार तक

मिर्जा कय्यूम के पास मुगल शहजादा दाराशिकोह द्वारा फारसी में अनूदित 50 उपनिषदों का सेट भी उपलब्ध है, जिसे गंभीर पाठक विशेष रूप से पसंद करते हैं। यह बताता है कि भारत की धार्मिक सहिष्णुता कोई नई परंपरा नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित विचारधारा रही है।

इन किताबों की एक बड़ी संख्या “देहाती पुस्तक भंडार” से प्रकाशित होती है, जो पिछले 90 वर्षों से उर्दू में सनातनी धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन और वितरण कर रहा है। इसके संस्थापक धूमीमल अग्रवाल ने यह सोचकर यह कार्य शुरू किया था कि उर्दू पढ़नेवाले लोग भी इन ग्रंथों को समझ सकें। अब उनके पोते विकास अग्रवाल इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

देशभर से मिल रही है मांग

मिर्जा कय्यूम बताते हैं कि इन पुस्तकों की मांग सिर्फ छत्रपति संभाजी नगर तक सीमित नहीं है, बल्कि हरिद्वार, जम्मू, लखनऊ, दिल्ली जैसे शहरों से भी ऑर्डर आते हैं। वे इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से इन ग्रंथों का प्रचार-प्रसार करते हैं और देश के कोने-कोने में इन्हें भेजते हैं।

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल

औरंगजेब की कब्र को लेकर चल रहे राजनीतिक व सामाजिक विवादों के बीच छत्रपति संभाजी नगर में धार्मिक ग्रंथों की यह पहल एक सकारात्मक संकेत है। यह बताता है कि आम जनता कट्टरता की ओर नहीं, बल्कि समझदारी और आपसी भाईचारे की दिशा में बढ़ रही है। उर्दू में रामायण और महाभारत की बढ़ती बिक्री इस बात का प्रमाण है कि भाषा एक पुल बन सकती है, दीवार नहीं।

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