रुक्मिणी कृष्ण विवाह अलौकिक प्रेम कथा है:किंकर महाराज

रुक्मिणी कृष्ण विवाह अलौकिक प्रेम कथा है:किंकर महाराज

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रुक्मिणी कृष्ण विवाह अलौकिक प्रेम कथा है:किंकर महाराज

संवाददाता: अनुज तिवारी,

लहल्हे में चल रहे सप्तम दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिन, कथा वाचक पूज्य श्री मारुति किंकर जी महाराज ने भगवत प्रेम की अनुपम छटा बिखेरते हुए “रुक्मिणी हरण” एवं “रास लीला” जैसे महत्त्वपूर्ण प्रसंगों का भावपूर्ण वर्णन किया। कथा स्थल पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी रही और वातावरण श्रीकृष्ण नाम के गगनभेदी जयकारों से गूंज उठा। कथा की शुरुआत में महाराज श्री ने रुक्मिणी जी के जन्म, उनका स्वभाव, विद्या, और भगवद्भक्ति पर प्रकाश डालते हुए यह बताया कि कैसे रुक्मिणी जी ने बचपन से ही श्रीकृष्ण को अपने हृदय में वास दे दिया था। उन्होंने राजा भीष्मक की पुत्री होते हुए भी, राज्य और धन के मोह से परे जाकर कृष्ण को ही अपना परम प्रिय माना। विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी ने जब अपने विवाह हेतु श्रीकृष्ण को पत्र लिखा और उनके प्रेम के लिए समाज और बंधनों से ऊपर उठीं, तो वह केवल एक प्रेमिका नहीं, बल्कि भक्ति की आदर्श प्रतीक बन गईं। मारुति किंकर जी महाराज ने अत्यंत सरस शैली में वर्णन किया कि कैसे श्रीकृष्ण ने रथ लेकर रुक्मिणी जी का हरण किया और शिशुपाल जैसे अभिमानी राजा को पराजित कर प्रेम और धर्म की विजय सुनिश्चित की। कथा के इस भाग में श्रोताओं ने रोमांच, उल्लास और भक्ति की गहराई को एक साथ अनुभव किया। इसके पश्चात महाराज श्री ने रास लीला का अद्भुत प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि रास लीला केवल एक नृत्य या मनोरंजन नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन की वह दिव्य अवस्था है’

रुक्मिणी कृष्ण विवाह अलौकिक प्रेम कथा है:किंकर महाराज

जहाँ गोपियाँ प्रतीक हैं जीवात्मा की, और श्रीकृष्ण हैं उस परमात्मा के जो सबमें रमते हैं। गोपियों का श्रीकृष्ण में विलय, उनकी पूर्ण समर्पण की भावना, और निस्वार्थ प्रेम – यह सब रास लीला के माध्यम से प्रकट होता है|महाराज श्री ने यह भी कहा कि रास लीला कोई सांसारिक प्रेम कथा नहीं, बल्कि यह उस अध्यात्म की पराकाष्ठा है जहाँ अहंकार समाप्त होता है और केवल भक्ति शेष रहती है। गोपियाँ अपने घर छोड़कर, समाज की परवाह किए बिना, केवल श्रीकृष्ण के चरणों की ओर दौड़ पड़ीं – यह भक्ति की सर्वोच्च अवस्था है।


पूरी कथा के दौरान श्रोतागण मंत्रमुग्ध होकर भावविभोर हो गए। कथा स्थल पर भक्तों की आँखें कभी आनंद से झिलमिलाईं तो कभी प्रेमाश्रुओं से भीग गईं। भजन, कीर्तन और महाराज श्री की प्रभावशाली वाणी ने वातावरण को श्रीकृष्णमय बना दिया। अंत में आरती एवं प्रसाद वितरण के साथ पंचम दिवस की कथा का समापन हुआ।

आयोजकों ने सभी श्रद्धालुओं से अनुरोध किया कि वे शेष दो दिवसों की कथा में भी पूरे उत्साह से सहभागी बनें और भगवान की दिव्य लीलाओं का रसास्वादन करें।कथा आयोजक विवेकानंद त्रिपाठी ने बताया कि 26 मई को यज्ञ की पूर्णाहुति उपरांत विशाल भंडारे का आयोजन है जिसमे सभी भक्तजन सादर आमंत्रित हैं।

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