देश में लिव-इन रिलेशनशिप पर वर्षों से बहस होती रही है। इसे सामाजिक, कानूनी और पारिवारिक दृष्टिकोण से अलग-अलग तरीकों से देखा जाता है। कानूनी रूप से अब यह अपराध नहीं है, लेकिन समाज का बड़ा हिस्सा इसे सहजता से स्वीकार नहीं करता। वहीं झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में सदियों से एक परंपरा चली आ रही है, जिसे आज की भाषा में लिव-इन जैसा ही माना जा सकता है। इसे ढुकु प्रथा कहा जाता है।
आदिवासी समाज में यदि कोई युवक-युवती एक-दूसरे को पसंद करते हैं और परिवार विवाह के लिए तैयार नहीं होते, तो युवक युवती को अपने घर ले आता है। इसके बाद दोनों पति-पत्नी की तरह साथ रहने लगते हैं, जबकि औपचारिक विवाह संस्कार नहीं होते। इसे ढुकु विवाह कहा जाता है। इस प्रथा में उम्र का कोई बंधन नहीं होता। जब भी युवक-युवती अपनी इच्छा से साथ रहना चाहते हैं, वे बिना सामाजिक रीति-रिवाजों के एक ही घर में रहने लगते हैं। हालांकि बाद में, सामाजिक मान्यता तब मिलती है जब ग्राम प्रधान या समाज के अन्य अगुवा पारंपरिक विधि-विधान से विवाह करवा देते हैं।
हाल ही में खूंटी जिले से जुड़ा एक मामला इस प्रथा पर नई बहस छेड़ गया। जिले के सदर अस्पताल में 14 वर्षीय लड़की पेट दर्द की शिकायत लेकर पहुंची। जांच में पता चला कि वह सात माह की गर्भवती है। जानकारी से स्पष्ट हुआ कि वह ढुकु प्रथा के तहत 16 वर्षीय युवक के साथ रह रही थी। परिजन ने इस संबंध को स्वीकार भी किया। बाद में नाबालिग लड़की ने अस्पताल में बच्ची को जन्म दिया। दोनों मां और बच्ची स्वस्थ हैं।
यह घटना ढुकु प्रथा पर कई सवाल खड़े करती है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस तरह की प्रथाओं के पीछे सबसे बड़ी वजह गरीबी, अशिक्षा और जागरूकता की कमी है। यही कारण है कि नाबालिग उम्र में लड़के-लड़कियां इस प्रथा का हिस्सा बन जाते हैं, जिससे स्वास्थ्य और सामाजिक स्तर पर कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि ढुकु प्रथा केवल झारखंड तक सीमित नहीं है। यह उन सभी राज्यों में देखने को मिलती है जहां आदिवासी समुदाय निवास करता है। उनके अनुसार, लड़का और लड़की यदि एक-दूसरे को पसंद करते हैं, तो लड़का लड़की को अपने घर ले आता है। दोनों साथ रहने लगते हैं और बाद में पारंपरिक विधियों से उनकी शादी करवा दी जाती है। यह प्रथा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और आदिवासी समाज की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा मानी जाती है।
हालांकि, दूसरे समुदायों में इसी तरह की प्रथा आधुनिक शहरी समाज में लिव-इन रिलेशनशिप के रूप में देखी जाती है। फर्क सिर्फ इतना है कि शहरी समाज इसे आधुनिकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा मानता है, जबकि आदिवासी समाज में यह परंपरा सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से स्थापित है।
फिर भी, दोनों ही स्थितियों में समाज का बड़ा हिस्सा इसे सहजता से स्वीकार नहीं करता। अधिकांश समाज में अंततः पारंपरिक विवाह ही सामाजिक मान्यता का आधार माना जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि पारंपरिक विवाह को अनिवार्य रूप से सुनिश्चित करना नाबालिगों और युवाओं के हित में है। नाबालिगों के स्वास्थ्य और मानसिक विकास के लिए समय से पहले जन्म और असुरक्षित संबंध खतरनाक साबित हो सकते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ढुकु प्रथा जैसी परंपराओं में सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना सबसे जरूरी है। युवा जो इस प्रथा के तहत रहते हैं, उन्हें कानूनी और सामाजिक संरचना के बारे में समझाना जरूरी है। ताकि नाबालिग लड़कियों और लड़कों को स्वास्थ्य, सुरक्षा और अधिकारों की जानकारी मिले और उन्हें बचपन में जिम्मेदारी न उठानी पड़े।
इस प्रकार, झारखंड में ढुकु प्रथा आदिवासी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन समय की मांग है कि इसे नाबालिग संरक्षण और सामाजिक जागरूकता के साथ संतुलित किया जाए, ताकि युवा सुरक्षित रहें और उनके स्वास्थ्य व भविष्य को कोई खतरा न हो।