रांची में किसानों की दयनीय स्थिति: सब्जी की कीमतों में गिरावट और खेती की निराशाजनक हालत

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रांची में किसानों की दयनीय स्थिति: सब्जी की कीमतों में गिरावट और खेती की निराशाजनक हालत

रांची में किसानों की दयनीय स्थिति: सब्जी की कीमतों में गिरावट और खेती की निराशाजनक हालत

झारखंड का रांची शहर, जहां एक ओर विकसित क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हो रहा है, वहीं दूसरी ओर यहां के ग्रामीण इलाकों में किसानों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। सब्जी की कीमतों में लगातार गिरावट, बिचौलियों द्वारा किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य न मिलना और कृषि उत्पादन की उचित कीमत के लिए संघर्ष कर रहे किसानों की स्थिति इस बात का प्रमाण है कि भारतीय कृषि में गहरी समस्याएं समाहित हैं।

हाल ही में रांची शहर के बाजारों में जैसे फूलगोभी, पत्ता गोभी, पालक, टमाटर जैसी सब्जियां मात्र पाँच से दस रुपए प्रति किलो बिक रही हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों के बाजारों में इनकी कीमतें इससे भी कम हैं। इन कीमतों के साथ, किसानों का जीवन और भी कठिन हो गया है। एक ओर जहां सब्जी का उत्पादन बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर किसानों को उनकी फसल की लागत भी पूरी नहीं मिल रही है। यह स्थिति न केवल किसान परिवारों के लिए बल्कि भारतीय कृषि क्षेत्र की समृद्धि के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय है।

किसान की कड़ी मेहनत का मूल्य न मिलना

राधेश्याम महतो जैसे किसान, जो अपनी एक एकड़ जमीन में पत्ता गोभी की फसल उगा रहे थे, ने जब देखा कि अपनी मेहनत का उचित मूल्य उन्हें नहीं मिल रहा, तो वह गुस्से में आ गए और अपनी पूरी फसल ट्रैक्टर से रौंद डाली। यह घटनाएँ केवल व्यक्तिगत गुस्से की वजह से नहीं हुईं, बल्कि यह भारतीय कृषि के भीतर व्याप्त आर्थिक दबाव और संकट की गहरी परतों को उजागर करती हैं। किसानों के लिए यह दृश्य अत्यंत हृदयविदारक है, क्योंकि वे अपनी मेहनत, समय और संसाधनों का निवेश करते हैं, और बदले में उन्हें अपनी फसल की लागत भी नहीं मिलती।

इस स्थिति का मुख्य कारण बिचौलियों का हस्तक्षेप है। किसानों को उनके उत्पाद की सही कीमत न मिलने के कारण वे कई बार निराश हो जाते हैं और ऐसी विकट परिस्थितियों में फसल को छोड़ने या नष्ट करने जैसे विकल्प का चयन करते हैं। रामगढ़ के चितरपुर प्रखंड और गोला प्रखंड के किसानों की स्थिति में कोई खास अंतर नहीं है। दोनों ही क्षेत्रों में किसानों को अपनी फसल की सही कीमत पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, और वे बिचौलियों के अत्यधिक दबाव में आकर अपनी फसल को खुद नष्ट करने को विवश हो रहे हैं।

बिचौलियों की भूमिका और किसानों के उत्पीड़न

भारत में कृषि व्यापार में बिचौलियों की भूमिका दशकों से बनी हुई है। बिचौलिए किसानों से उत्पाद खरीदते हैं, लेकिन वे उन्हें बहुत कम कीमत पर बेचते हैं, जिससे किसानों को न तो पर्याप्त मुनाफा मिलता है और न ही उनके परिवार की दैनिक जरूरतें पूरी हो पाती हैं। बिचौलियों की ताकत इतनी बढ़ चुकी है कि वे किसान की मेहनत का पूरा मूल्य न देकर, खुद बड़े मुनाफे की कमाई करते हैं।

रांची और आसपास के क्षेत्रों में सब्जियों की कीमतें न केवल किसानों की लागत से कम हैं, बल्कि किसानों को अपनी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। राधेश्याम महतो और उनके जैसे कई किसान जब अपनी फसल को बाजार में ले जाते हैं तो बिचौलिये उनकी मेहनत का मोल घटाकर उन्हें खरीदते हैं। इसके कारण किसानों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचता, और वे या तो अपनी फसल को सड़ने के लिए छोड़ देते हैं या उसे नष्ट कर देते हैं।

कृषि के लिए सरकारी नीतियों की कमी

भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन उन योजनाओं का प्रभावी रूप से कार्यान्वयन अब तक नहीं हो पाया है। किसानों की स्थिति में सुधार के लिए जो नीतियां बनाई गई हैं, उनमें से कई का क्रियान्वयन जमीन पर नहीं हो पा रहा है। कृषि बाजारों में सुधार, बेहतर मूल्य निर्धारण की प्रणाली, बिचौलियों के खिलाफ कड़े कदम और कृषि उत्पादों के लिए स्थिर कीमतों की व्यवस्था जैसी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

विशेष रूप से सब्जी उत्पादकों के लिए कोई विशिष्ट योजनाएं नहीं हैं, जो उनके उत्पादों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित कर सकें। इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने के बावजूद किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। यह सरकार की नीतियों में एक गहरी कमी है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संकट में डाल रही है।

कृषि में सुधार के लिए जरूरी कदम

  1. कृषि उत्पादकों के लिए समर्थन मूल्य: किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिलना चाहिए, ताकि उन्हें नुकसान न हो। यह मूल्य निश्चित करना जरूरी है ताकि बिचौलियों को बाजार में अपनी मनमानी करने का मौका न मिले।
  2. कृषि बाजार सुधार: कृषि बाजारों में पारदर्शिता और सुधार की जरूरत है। किसानों को उनके उत्पाद बेचने के लिए सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ने वाले माध्यमों को बढ़ावा देना होगा, जिससे बिचौलियों का हस्तक्षेप कम हो सके।
  3. कृषि उत्पादों की ब्रांडिंग और पैकेजिंग: किसानों के लिए अपनी सब्जियों और अन्य कृषि उत्पादों की ब्रांडिंग और पैकेजिंग की दिशा में काम किया जाना चाहिए। इससे उनकी फसल की पहचान बनेगी और मूल्य में वृद्धि हो सकेगी।
  4. सतत और सस्ती कृषि प्रशिक्षण: किसानों को नई तकनीकों, उच्च उत्पादन विधियों और बाजार की मांग के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। इसके लिए उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करनी चाहिए।
  5. रियायती ऋण और वित्तीय सहायता: किसानों को सस्ते और सरल ऋण मिलना चाहिए, जिससे वे अपनी खेती के लिए आवश्यक संसाधन जुटा सकें और उत्पादन में वृद्धि कर सकें।
  6. कृषि उत्पादों के लिए दीर्घकालिक मूल्य नीति: सरकार को ऐसी दीर्घकालिक योजना बनानी चाहिए, जो सुनिश्चित करे कि कृषि उत्पादों के मूल्य स्थिर रहे और किसानों को समय पर उनकी फसल का उचित मूल्य मिले।

निष्कर्ष

राधेश्याम महतो और अन्य किसानों के द्वारा अपनी फसल को नष्ट करने की घटना कृषि क्षेत्र की दयनीय स्थिति को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। भारतीय किसानों के लिए वर्तमान कृषि व्यापारिक माहौल असहनीय हो चुका है, जहां उन्हें न तो अपनी मेहनत का उचित मूल्य मिल रहा है, और न ही उनके लिए कोई सरकारी सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध है। यह समय है कि सरकार और अन्य संबंधित संस्थाएं कृषि क्षेत्र में बुनियादी सुधारों की दिशा में कदम उठाएं ताकि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सके और वे कृषि में अपना निवेश कर सकें।

यह स्थिति हमें यह भी समझने का अवसर देती है कि जब तक कृषि क्षेत्र में वास्तविक सुधार नहीं होंगे, तब तक किसान आत्महत्या, निराशा और अपनी फसलों को नष्ट करने जैसी परिस्थितियों से जूझते रहेंगे। अब समय आ गया है कि हम भारतीय कृषि को बचाने के लिए वास्तविक और स्थायी कदम उठाएं।

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