रोज़गार की तलाश में मुंबई गए प्रवासी मज़दूर की हार्ट अटैक से मौत, पैतृक गांव में छाया मातम

रोज़गार की तलाश में मुंबई गए प्रवासी मज़दूर की हार्ट अटैक से मौत, पैतृक गांव में छाया मातम

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रोज़गार की तलाश में मुंबई गए प्रवासी मज़दूर की हार्ट अटैक से मौत, पैतृक गांव में छाया मातम

उधवा।
झारखंड से रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन करने वाले प्रवासी मज़दूरों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक बार फिर साहिबगंज जिले के उधवा प्रखंड के प्राणपुर पंचायत के ग्राम भगत टोला निवासी प्रवासी मज़दूर सैदुल शेख (30 वर्ष) की मुंबई में असामयिक मौत हो गई। बताया जाता है कि मंगलवार की शाम मुंबई के मुलुंड मार्केट में काम के दौरान अचानक उन्हें सीने में तेज दर्द हुआ और देखते ही देखते वे ज़मीन पर गिर पड़े। इलाज के लिए अस्पताल ले जाने पर चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

काम के दौरान अचानक गिरे ज़मीन पर

घटना के संबंध में मुंबई में मृतक के साथी और राजमहल थाना क्षेत्र के मनसिंघा निवासी व्यवसायी एवं सामाजिक कार्यकर्ता नसरुद्दीन आलम अशरफी ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सैदुल शेख रोज़ाना की तरह मंगलवार को भी मुलुंड मार्केट में फल बेचने का काम कर रहे थे। शाम करीब पांच बजे अचानक उनके सीने में दर्द और जलन महसूस हुई और वे बेहोश होकर वहीं गिर पड़े। साथी मज़दूरों ने उन्हें तुरंत श्रीमती एम.टी. अग्रवाल म्युनिसिपल अस्पताल में भर्ती कराया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।

पैतृक गांव में पसरा मातम

सैदुल शेख की मौत की खबर जैसे ही उनके पैतृक गांव प्राणपुर पहुँची, पूरे गांव में मातम छा गया। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। ग्रामीणों की भारी भीड़ मृतक के घर उमड़ पड़ी। जानकारी के अनुसार, सैदुल कुछ ही दिन पहले मुंबई कमाने गए थे और परिवार का भरण-पोषण करने के लिए फल की दुकान लगाया करते थे। वे अपने पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़ गए हैं। एक बेटा महज 4 साल का है जबकि बेटी की उम्र केवल 1 वर्ष है। बुधवार को शव का पोस्टमार्टम कराया गया, जिसके बाद शव को पैतृक गांव लाने की तैयारी की जा रही थी।

प्रवासी मज़दूरों के सामने चुनौती

गौरतलब है कि साहिबगंज और आसपास के इलाक़े से हर साल बड़ी संख्या में मज़दूर रोज़गार की तलाश में महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों की ओर पलायन करते हैं। इनमें से अधिकांश लोग निर्माण कार्य, सब्ज़ी-फल बिक्री, फैक्ट्री मज़दूरी और छोटे-मोटे व्यापार से परिवार का खर्च चलाते हैं। हालांकि, कई बार बाहर काम करने वाले इन प्रवासी मज़दूरों को दुर्घटनाओं या अचानक बीमारियों की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ती है, जिससे उनके परिवार गहरे संकट में आ जाते हैं।

क्या कहते हैं श्रम अधीक्षक?

इस घटना पर जिला श्रम अधीक्षक बबन कुमार सिंह ने जानकारी दी कि प्रवासी मज़दूरों की मौत होने पर सरकार की ओर से आर्थिक सहायता का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि यदि किसी मज़दूर की एक्सीडेंट, हादसा या दुर्घटना में मृत्यु होती है और वह पंजीकृत (निबंधित) है तो परिजनों को 2 लाख रुपये तक की सहायता दी जाती है। निबंधन न होने की स्थिति में यह राशि 1.5 लाख रुपये है। वहीं, दिव्यांग हो जाने पर भी मुआवजा उपलब्ध है।

उन्होंने आगे कहा कि सामान्य मृत्यु जैसे हार्ट अटैक या अन्य बीमारी से मौत होने की स्थिति में शव को पैतृक गांव लाए जाने पर एंबुलेंस का किराया और अन्य दस्तावेज़ जमा करने पर 50 हज़ार रुपये तक की सहायता मिल सकती है। श्रम अधीक्षक ने यह भी बताया कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक 4 से 5 अलग-अलग मामलों में ऐसे प्रभावित परिवारों को सहायता दी गई है।

स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशासन से मृतक के परिवार को यथाशीघ्र आर्थिक सहायता प्रदान करने की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि सैदुल जैसे प्रवासी मज़दूर अपने परिवार का सहारा होते हैं, और उनकी अचानक मौत से पूरा परिवार बिखर जाता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि प्रभावित परिवार को राहत राशि के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा और परिवार की जीविका के लिए दीर्घकालिक योजना बनाए।

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