भारत-फ्रांस रक्षा सहयोग का नया अध्याय: 63,000 करोड़ रुपए में 26 राफेल मरीन विमानों की ऐतिहासिक डील साइन

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भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग एक नए और ऐतिहासिक मोड़ पर पहुंच गया है। सोमवार को नई दिल्ली में भारत ने फ्रांस से 26 अत्याधुनिक राफेल मरीन लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए एक बड़ी डील पर साइन किया। भारत की ओर से रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह सौदा हथियारों की खरीद के क्षेत्र में भारत और फ्रांस के बीच अब तक की सबसे बड़ी डील मानी जा रही है।

22 सिंगल सीटर और 4 डबल सीटर विमान होंगे शामिल

समझौते के तहत भारत 22 सिंगल सीटर और 4 डबल सीटर राफेल मरीन विमान खरीदेगा। डबल सीटर विमान प्रशिक्षण और विशेष मिशनों के लिए उपयोग किए जाएंगे। इन विमानों को भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किया जाएगा, जिससे भारत की समुद्री शक्ति में अभूतपूर्व इजाफा होगा।

राफेल मरीन विमान विशेष रूप से नौसेना के विमानवाहक पोतों पर तैनाती के लिए डिजाइन किए गए हैं और वे कम जगह में भी टेकऑफ और लैंडिंग कर सकते हैं।

परमाणु क्षमता से लैस होंगे नए राफेल मरीन

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये राफेल मरीन विमान परमाणु हथियार दागने की क्षमता से लैस होंगे। इसका मतलब है कि भारतीय नौसेना के पास भविष्य में अपनी पनडुब्बियों और युद्धपोतों के अलावा विमानवाहक पोतों से भी परमाणु हथियारों को लॉन्च करने की क्षमता होगी।

यह भारत के परमाणु त्रिकेंद्र (nuclear triad) को और मजबूत करेगा, जो भूमि, जल और वायु से परमाणु हमला करने की रणनीति का आधार है।

63,000 करोड़ रुपए में हुआ सौदा

रिपोर्ट्स के अनुसार, इस सौदे की कुल लागत लगभग 63,000 करोड़ रुपए है। यह सौदा भारत और फ्रांस के रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने वाला कदम माना जा रहा है। भारत पहले ही वायुसेना के लिए 36 राफेल विमान खरीद चुका है, जिनकी आपूर्ति फ्रांस ने निर्धारित समय से पहले पूरी कर दी थी। अब नौसेना के लिए भी उसी भरोसे पर यह नया सौदा हुआ है।

डील में विमान के साथ लॉजिस्टिक सपोर्ट, हथियार प्रणाली, स्पेयर पार्ट्स और पायलटों व तकनीशियनों के प्रशिक्षण का भी प्रावधान शामिल है।

कैबिनेट की मंजूरी और आतंकी हमले की पृष्ठभूमि

23 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी, जिसमें इस डील को अंतिम मंजूरी दी गई थी।

यह बैठक जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के तुरंत बाद बुलाई गई थी, जिसमें 26 नागरिकों की जान चली गई थी। आतंकी हमले के बाद भारत ने अपनी सुरक्षा तैयारियों को और मजबूत करने का निर्णय लिया। राफेल मरीन डील इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत की सामरिक और नौसैनिक ताकत को बढ़ाना है।

कब मिलेगी डिलीवरी?

रिपोर्ट्स के अनुसार, राफेल मरीन विमानों की डिलीवरी वर्ष 2028-29 में शुरू होगी। सभी 26 विमान 2031-32 तक भारत पहुंच जाएंगे। इस दौरान भारतीय नौसेना के पायलटों और ग्राउंड क्रू को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा ताकि विमानों के संचालन और रखरखाव में कोई समस्या न हो।

भारत में INS Vikrant और INS Vikramaditya जैसे विमानवाहक पोतों पर इन विमानों की तैनाती की योजना बनाई गई है। इससे हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी।

भारत-फ्रांस रक्षा साझेदारी: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग का इतिहास पुराना है। दोनों देशों ने कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में सहयोग किया है, जैसे कि स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बियों का निर्माण (जिसे भारत में ‘कलवरी क्लास’ कहा जाता है)।

राफेल डील भी इसी मजबूत साझेदारी का हिस्सा है। फ्रांस ने न केवल भारत को उन्नत तकनीक मुहैया कराई है, बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता (Make in India) पहल में भी सहयोग किया है।

नई डील के साथ, भारत और फ्रांस के बीच रक्षा, रणनीतिक और तकनीकी साझेदारी एक नए उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।

रणनीतिक महत्व

राफेल मरीन विमानों की तैनाती से भारत को दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर जैसे महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्रों में अपने हितों की रक्षा करने में बढ़त मिलेगी। भारत के लिए यह सौदा सिर्फ सैन्य शक्ति बढ़ाने का नहीं, बल्कि रणनीतिक संतुलन स्थापित करने का भी साधन है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य के युद्धों में समुद्री वायु शक्ति निर्णायक भूमिका निभाएगी। ऐसे में राफेल मरीन भारत के ‘ब्लू वॉटर नेवी’ सपने को साकार करने में मदद करेगा।

एक मजबूत और सुरक्षित भारत की ओर

भारत द्वारा 26 राफेल मरीन विमानों की खरीद का फैसला देश की रक्षा नीति में एक बड़ा कदम है। यह सौदा न केवल भारतीय नौसेना की ताकत को बढ़ाएगा, बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर एक मजबूत समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा।

जहां एक ओर आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ भारत की तैयारियों को बल मिलेगा, वहीं दूसरी ओर यह सौदा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को भी आगे बढ़ाएगा।

अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि किस तरह भारत आने वाले वर्षों में इन अत्याधुनिक विमानों का उपयोग अपनी समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए करता है।

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