बाल विवाह से टली एक और मासूम की जिंदगी, रांची में एनजीओ और प्रशासन की सक्रियता से रोकी गई नाबालिग की शादी

बाल विवाह से टली एक और मासूम की जिंदगी, रांची में एनजीओ और प्रशासन की सक्रियता से रोकी गई नाबालिग की शादी

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बाल विवाह से टली एक और मासूम की जिंदगी, रांची में एनजीओ और प्रशासन की सक्रियता से रोकी गई नाबालिग की शादी

रांची:-रांची के धुर्वा इलाके में एक 16 वर्षीय नाबालिग लड़की की शादी को प्रशासन और एनजीओ की सूझबूझ से रोक लिया गया। यह शादी रामगढ़ जिले के मांडू क्षेत्र में स्थित करमा गांव के एक शिव मंदिर में होनी थी, जिसमें 20 वर्षीय युवक से विवाह की तैयारी चल रही थी। समय रहते मिली सूचना पर मांडू के बीडीओ रितिक कुमार और कुजू ओपी प्रभारी मो. नौशाद ने मौके पर पहुंचकर विवाह रुकवा दिया।

घटना की जानकारी करमा दक्षिणी पंचायत के सचिव नील कमल द्विवेदी द्वारा मांडू बीडीओ को दी गई थी। उन्होंने अपने आवेदन में बताया कि धुर्वा की एक नाबालिग लड़की की शादी सोमवार शाम 5 बजे करमा शिव मंदिर में कराई जा रही है। सूचना मिलते ही प्रशासन सक्रिय हुआ और विवाह स्थल पर पहुंचकर कार्रवाई की।

प्रशासन ने मौके पर पहुंचते ही विवाह में शामिल होने वाले सभी लोगों को रोका और नाबालिग लड़का-लड़की को थाने ले जाकर उनके परिवार वालों को भी बुलाया गया। वहां उन्हें बाल विवाह निषेध कानून 2006 की जानकारी दी गई, जिसमें स्पष्ट है कि नाबालिगों की शादी कराने पर दो लाख रुपये का जुर्माना और सजा का प्रावधान है।

बातचीत और समझाइश के बाद दोनों परिवारों ने आपसी सहमति से विवाह न करने का निर्णय लिया। अधिकारियों ने स्पष्ट कर दिया कि इस प्रकार के विवाह कानूनन अपराध हैं और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

इस पूरे मामले में प्रतिज्ञा संस्था की भूमिका सराहनीय रही। संस्था की सदस्य लक्ष्मी ने बताया कि लड़की की उम्र महज 16 वर्ष है और उसका पूरा परिवार कचरा चुनने का काम करता है। गरीबी और असहायता के कारण लड़की के पिता ने उसे एक दिव्यांग युवक से 20 हजार रुपये में शादी के लिए तय कर दिया था।

रविवार की रात को ही संस्था के सदस्यों ने लड़की के घर जाकर उसके पिता और अन्य परिजनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन इसके बावजूद सोमवार को लड़की को शादी के लिए रामगढ़ ले जाया गया। इसके बाद संस्था के चंदन सिंह ने रामगढ़ एसपी अजय कुमार को इसकी जानकारी दी और तत्परता से कार्रवाई करते हुए विवाह को रुकवाया गया।

यह मामला न सिर्फ बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति पर प्रशासन और समाज की संयुक्त कार्यवाही का उदाहरण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जागरूकता और दृढ़ संकल्प से किसी मासूम की जिंदगी को गलत मोड़ लेने से बचाया जा सकता है।

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