
(रिपोर्ट: अमीन अंसारी, रांची)
रांची: झारखंड सरकार द्वारा मुख्यमंत्री आवास में आयोजित दावत-ए-इफ्तार को लेकर सोशल मीडिया पर व्यापक विरोध देखने को मिल रहा है। मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवियों और युवाओं का कहना है कि सरकार को सिर्फ प्रतीकात्मक सम्मान देने के बजाय ठोस और नीतिगत कदम उठाने चाहिए, जिससे समाज का वास्तविक उत्थान हो सके।
सोशल मीडिया पर चल रहे विरोध के पीछे मुख्य कारण यह है कि झारखंड में इंडिया गठबंधन सरकार के दूसरे कार्यकाल के बावजूद मुस्लिम समुदाय के शिक्षा, रोजगार, न्याय और अधिकारों से जुड़े मुद्दों का समाधान नहीं हुआ है। सरकार की अल्पसंख्यक नीति को लेकर भी असंतोष जाहिर किया जा रहा है।
सरकार के खिलाफ नहीं, नीतिगत सुधारों की मांग
अल्पसंख्यक मामलों के जानकार एस. अली ने कहा कि सोशल मीडिया पर किया जा रहा विरोध सरकार के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसका मकसद मुस्लिम समुदाय से जुड़े शिक्षा, रोजगार, न्याय और अधिकारों से संबंधित नीतिगत मामलों को हल कराना है।
उन्होंने कहा कि मात्र इफ्तार का आयोजन कर देने से समुदाय की समस्याओं का समाधान नहीं होगा, बल्कि इसके लिए ठोस योजनाएं और नीतिगत बदलाव जरूरी हैं। मुस्लिम समुदाय के कई बुद्धिजीवियों ने भी सोशल मीडिया पर यह सवाल उठाया है कि जब सरकार उनके मूलभूत अधिकारों और जरूरतों पर ध्यान नहीं दे रही है, तो फिर इफ्तार का क्या महत्व रह जाता है?
समुदाय की मुख्य शिकायतें और लंबित मुद्दे
- अल्पसंख्यक बजट में कटौती:
- झारखंड सरकार के बजट में मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए कोई नई योजना शुरू नहीं की गई।
- अल्पसंख्यक विकास बजट में बढ़ोतरी के बजाय कटौती कर दी गई, जिससे समुदाय को निराशा हुई।
- शिक्षा और रोजगार से जुड़े मुद्दे:
- उर्दू शिक्षकों की बहाली को लेकर अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ।
- मदरसों में आलिम और फाजिल डिग्री को लेकर भी सरकार की ओर से कोई स्पष्ट नीति नहीं आई।
- बुनकरों और भूमिहीन मुस्लिम समुदाय के लिए कोई विशेष योजना शुरू नहीं की गई।
- मॉब लिंचिंग कानून और न्याय का अभाव:
- झारखंड में मॉब लिंचिंग के कई मामले सामने आए, लेकिन अब तक सरकार ने कोई सख्त कानून लागू नहीं किया।
- रांची 10 जून 2022 गोलीकांड के पीड़ितों को अब तक न्याय नहीं मिल सका है।
- हज यात्रा और त्योहारों पर उपेक्षा:
- रांची से हज यात्रा को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई गई।
- मुस्लिम त्योहारों की छुट्टियों में बढ़ोतरी को लेकर सरकार की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया।
- 15 सूत्री कमेटी में अयोग्य लोगों की नियुक्ति:
- झारखंड सरकार द्वारा गठित अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की 15 सूत्री कमेटी में बाहरी और अयोग्य लोगों की नियुक्ति की गई।
- इससे मुस्लिम समुदाय में असंतोष बढ़ा और सरकार की नीयत पर सवाल उठने लगे।
सोशल मीडिया पर क्या कह रहे लोग?
सरकार की नीति पर असंतोष जाहिर करते हुए सोशल मीडिया पर कई लोगों ने प्रतिक्रिया दी:
- एक यूजर ने लिखा, “हमारे समुदाय को नीतिगत सहयोग चाहिए, सिर्फ इफ्तार की दावत से भला क्या होगा?”
- एक अन्य ने कहा, “अगर सरकार को हमारी फिक्र होती तो हमारे बच्चों के लिए रोजगार और शिक्षा पर ध्यान देती।”
- कई लोगों ने सरकार से सवाल किया कि इफ्तार के नाम पर खर्च करने के बजाय यह पैसा मुस्लिम समुदाय की शिक्षा और कल्याण पर क्यों नहीं लगाया गया?
सरकार की चुप्पी और राजनीतिक निहितार्थ
विशेषज्ञों का मानना है कि झारखंड सरकार की चुप्पी इस बात की ओर इशारा करती है कि सरकार सिर्फ सांकेतिक राजनीति कर रही है और वास्तविक मुद्दों से बच रही है। मुस्लिम समुदाय के लिए ठोस नीति बनाने के बजाय इफ्तार जैसी सांस्कृतिक गतिविधियों का सहारा लिया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार अल्पसंख्यकों के मूल मुद्दों से बचकर केवल सांकेतिक इफ्तार आयोजनों के जरिए वोटबैंक की राजनीति कर रही है।
क्या सरकार बदलेगी अपनी नीति?
इस बढ़ते विरोध को देखते हुए यह सवाल उठ रहा है कि क्या झारखंड सरकार अब मुस्लिम समुदाय के वास्तविक मुद्दों पर ध्यान देगी?
अगर सरकार इन मांगों को नजरअंदाज करती है, तो आने वाले चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है। मुस्लिम समुदाय, जो झारखंड में एक महत्वपूर्ण वोटबैंक है, अगर नीतिगत उपेक्षा महसूस करता है, तो वह आगामी चुनावों में इंडिया गठबंधन से दूरी बना सकता है।