(रिपोर्ट: विशेष संवाददाता, नई दिल्ली)

नई दिल्ली। लोकसभा में बुधवार को झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा गरमाता दिखा। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शून्यकाल के दौरान इस विषय पर केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि झारखंड में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए बस चुके हैं, जिससे राज्य की जनसांख्यिकी में बड़ा बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि आगामी परिसीमन में इस विषय को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाना चाहिए और झारखंड के संथाल परगना को अलग राज्य बनाए जाने पर भी विचार किया जाना चाहिए।
झारखंड में बदलता जनसांख्यिकीय संतुलन
भाजपा सांसद ने सदन में आंकड़ों के माध्यम से यह दावा किया कि राज्य में मुस्लिम आबादी में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि आदिवासी समुदाय की संख्या 17 प्रतिशत घट गई है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि वर्तमान जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया गया, तो झारखंड में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या में कटौती हो सकती है।
झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से पांच सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। लेकिन यदि परिसीमन केवल वर्तमान जनसंख्या के आधार पर होता है, तो यह आरक्षित सीटों की संख्या को प्रभावित कर सकता है, जिससे आदिवासियों के हितों पर गहरा असर पड़ेगा।
संथाल परगना को अलग राज्य बनाने की मांग
सांसद निशिकांत दुबे ने झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र को अलग राज्य बनाने की पुरजोर वकालत की। उन्होंने कहा कि यह केवल हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की रक्षा से जुड़ा सवाल है। उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने पर विचार करे, ताकि राज्य में कानून व्यवस्था और जनसांख्यिकी असंतुलन को नियंत्रित किया जा सके।
संथाल परगना में आदिवासियों की घटती संख्या पर चिंता
भाजपा सांसद ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 1951 में संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 45 प्रतिशत थी, जो 2011 की जनगणना में घटकर 28 प्रतिशत रह गई। दूसरी ओर, मुस्लिम जनसंख्या 9 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत तक पहुंच गई है। निशिकांत दुबे ने दावा किया कि यह बदलाव बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण हुआ है, जिस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
भाजपा ने चुनावों में भी उठाया था घुसपैठ का मुद्दा
यह पहली बार नहीं है जब भाजपा ने झारखंड में घुसपैठ को एक बड़ा मुद्दा बनाया है। हाल ही में संपन्न झारखंड विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने इस विषय को जोर-शोर से उठाया था। भाजपा का कहना है कि राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे आदिवासी और मूल निवासियों के हितों को नुकसान हो रहा है।
परिसीमन पर कांग्रेस और विपक्षी दलों पर निशाना
निशिकांत दुबे ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस भी परिसीमन को जनसंख्या के आधार पर किए जाने की वकालत करती रही है। उन्होंने सवाल किया कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जो डीएमके की विपक्षी बैठक में शामिल होते हैं, क्या उन्हें अपने राज्य की जनसांख्यिकी पर चिंता है?
सांसद ने यह भी आरोप लगाया कि 1973 में परिसीमन के दौरान राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ही सीटें बढ़ाई गई थीं, जहां कांग्रेस की सरकारें थीं, जबकि कई अन्य राज्यों को परिसीमन से वंचित रखा गया था।
राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग
सांसद निशिकांत दुबे ने अपने बयान में यह भी कहा कि झारखंड की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए केंद्र सरकार को वहां राष्ट्रपति शासन लगाने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य में बढ़ती अराजकता, अवैध घुसपैठ और प्रशासनिक विफलताओं को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दे।
भाजपा के अन्य सांसदों का भी समर्थन
लोकसभा में भाजपा के कई अन्य सांसदों ने भी निशिकांत दुबे के इस बयान का समर्थन किया और झारखंड में बढ़ते घुसपैठ के खतरे को लेकर चिंता जताई। भाजपा सांसदों का कहना था कि यदि इस विषय पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में राज्य की मूल पहचान खतरे में पड़ सकती है।
निष्कर्ष
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा लोकसभा में उठाए गए इस मुद्दे से झारखंड की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। उन्होंने परिसीमन में जनसांख्यिकीय बदलावों को ध्यान में रखने, संथाल परगना को अलग राज्य बनाने और झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और झारखंड की मौजूदा सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है।