
सारठ (झारखंड): दोस्ती का रिश्ता कई बार खून के रिश्तों से भी गहरा साबित होता है। सारठ प्रखंड के एक गांव में ऐसी ही एक अनोखी दोस्ती की मिसाल देखने को मिली, जहां 80 वर्षों से एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी रहे दो मित्रों ने दुनिया से भी एक साथ विदाई ले ली।
केदार झा की मौत, नीलकंठ झा के लिए असहनीय खबर
गांव के रहने वाले केदार झा (82 वर्ष) बीते कुछ समय से बीमार चल रहे थे और उनका इलाज रांची में चल रहा था। मंगलवार सुबह जब परिजनों को उनकी मौत की खबर मिली, तो पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई। जैसे ही यह दुखद समाचार उनके अभिन्न मित्र नीलकंठ झा (80 वर्ष) को दिया गया, वे गहरे सदमे में चले गए।
नीलकंठ झा ने कुछ पल तक कुछ नहीं कहा, वे एक पल के लिए सोचने की मुद्रा में दिखे और फिर अचानक बेहोश होकर गिर पड़े। परिजन उन्हें आनन-फानन में सारठ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) लेकर गए, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
गांव में छाया मातम, दोनों की अर्थी साथ उठी
एक ही दिन में दो बुजुर्ग मित्रों के निधन से पूरा गांव स्तब्ध रह गया। पहले जहां केवल केदार झा की अंतिम यात्रा की तैयारी चल रही थी, वहीं कुछ ही घंटों में नीलकंठ झा के निधन की खबर आते ही पूरे गांव में मातम पसर गया।
गांववालों ने दोनों की अर्थी को कंधा दिया और अजय नदी स्थित श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया। उनकी अंतिम यात्रा में शामिल ग्रामीणों के चेहरों पर गहरा दुख झलक रहा था। हर किसी की आंखें नम थीं, क्योंकि उन्होंने बचपन से लेकर बुढ़ापे तक एक-दूसरे का साथ निभाने वाली अनोखी दोस्ती को खो दिया था।
दोस्ती की अनूठी मिसाल, 80 वर्षों तक अटूट रिश्ता
केदार झा और नीलकंठ झा की दोस्ती किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी। दोनों ने एक साथ हाईस्कूल की पढ़ाई की थी और बचपन से ही एक-दूसरे के साथ रहे। वर्षों तक वे हर शाम सारठ चौक पर बैठकर समाचारपत्र पढ़ते और गांव-समाज की चर्चाओं में भाग लेते। उनकी यह आदत उनके आखिरी दिनों तक बनी रही।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि दोनों हमेशा एक-दूसरे का साथ निभाते थे, चाहे वह शादी-ब्याह हो या कोई सामाजिक कार्य। वे एक-दूसरे के बिना अधूरे से लगते थे। यही कारण रहा कि जब केदार झा इस दुनिया से विदा हुए, तो नीलकंठ झा यह आघात सहन नहीं कर सके और कुछ ही घंटों में उन्होंने भी दम तोड़ दिया।
गांववालों की नम आंखें, भावुक विदाई
दोनों मित्रों की अंतिम यात्रा में गांव के सैकड़ों लोग शामिल हुए। अंतिम संस्कार में भरत झा, भोला झा, नरेश झा, दिलीप झा, प्रदीप झा, विजय कुमार झा, मनोज झा, मंगलू झा, सोहन झा, प्रदीप कुमार सिन्हा, त्रिपुरारी झा, रितेश कुमार, मुरारी झा, संजय सिन्हा, ताराकांत झा, सोनामुनी झा समेत बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे।
गांव में इस तरह की अनोखी दोस्ती की मिसाल पहले कभी नहीं देखी गई थी। लोगों ने नम आंखों से दोनों को श्रद्धांजलि दी और कहा कि उनकी दोस्ती हमेशा याद रखी जाएगी।
“दो जिस्म, एक जान” वाली दोस्ती की अनोखी दास्तान
गांववालों के अनुसार, केदार झा और नीलकंठ झा की दोस्ती सिर्फ आम दोस्ती नहीं थी, बल्कि वे “दो जिस्म, एक जान” की तरह थे। वे एक-दूसरे के परिवार का हिस्सा बन चुके थे और हमेशा हर सुख-दुख में साथ खड़े रहते थे।
गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि ऐसी दोस्ती बहुत कम देखने को मिलती है। यह घटना सभी को सिखाती है कि सच्ची दोस्ती समय और परिस्थितियों से परे होती है। यह सिर्फ एक साथ हंसने और खेलने तक सीमित नहीं होती, बल्कि एक-दूसरे की तकलीफों को महसूस करने और अंत तक साथ निभाने का नाम भी है।
एक युग का अंत, लेकिन एक प्रेरणादायक कहानी
केदार झा और नीलकंठ झा की यह कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी। उनकी दोस्ती यह संदेश देती है कि सच्ची मित्रता उम्रभर निभाई जाती है और एक-दूसरे के सुख-दुख को साझा करना ही असली दोस्ती होती है।
आज वे दोनों इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी दोस्ती की यह कहानी हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेगी।