
बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा ममता कुलकर्णी, जो कभी फिल्मों की ग्लैमर इंडस्ट्री का चमकता चेहरा थीं, आज आध्यात्मिकता के पथ पर पूरी तरह समर्पित हो चुकी हैं। उन्होंने “श्री यमाई ममता नंदगिरि” नाम से किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर की उपाधि ग्रहण की। यह एक ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक घटना है, जिसमें उन्होंने सांसारिक जीवन को त्यागकर आध्यात्मिक जीवन को पूरी तरह अपना लिया। ममता ने दैनिक भास्कर के साथ अपने पहले एक्सक्लूसिव साक्षात्कार में इस अनूठे परिवर्तन के अनुभव साझा किए।
22 वर्षों की तपस्या और आध्यात्मिकता की ओर यात्रा
ममता कुलकर्णी ने अपने जीवन के पिछले 22-23 वर्षों को तप और साधना में व्यतीत किया है। उन्होंने कहा, “मैंने मानव कल्याण के लिए संन्यास लिया है। संन्यास लेने के बाद जीवन की साधारण बंधनाएं, जैसे विवाह, खत्म हो जाती हैं। अब महामंडलेश्वर बनने के बाद इस तरह के सवाल हमेशा के लिए समाप्त हो गए।”
उन्होंने यह भी कहा कि उनका वर्तमान जीवन, पूर्ण त्याग और तपस्या पर आधारित है, और यह सांसारिक सुखों से बहुत अलग है।
बॉलीवुड से आध्यात्मिकता: बदलते परिवेश का अनुभव
महामंडलेश्वर बनने के बाद की अपनी स्थिति को ममता ने एक बड़े अकादमिक लक्ष्य की पूर्ति से जोड़ा। उन्होंने इसे इस तरह व्यक्त किया, “जैसे एक लड़की लंबे समय तक यूनिवर्सिटी में मेहनत करती है और फिर डॉक्टर बनती है, वैसे ही मुझे भी ऐसा अनुभव हो रहा है। मेरे शब्द इस बदलाव की गहराई को बयां नहीं कर सकते।”
बॉलीवुड के अपने दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वे अब पूरी तरह से एक नया जीवन जी रही हैं। उन्होंने उन दिनों और आज के अनुभव को कपड़ों और मानसिकता के अंतर से जोड़ा। “बॉलीवुड के समय मेरे कपड़े और जीवनशैली अलग थी। अब महामंडलेश्वर बनने के बाद, मेरे वस्त्र ही नहीं, बल्कि मेरी सोच और जीवन की दिशा भी पूरी तरह बदल गई है।”

किन्नर अखाड़े ने दिया महामंडलेश्वर का दर्जा
ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े ने महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की, जो उनके नए जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। किन्नर अखाड़ा, जिसे समाज के हाशिए पर खड़े लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए जाना जाता है, ने इस पद के लिए ममता का चयन कर उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी है।
विवादों का केंद्र: महामंडलेश्वर का पद और कुंभ मेले की मान्यताएं
हालांकि ममता के महामंडलेश्वर बनने पर विवाद भी खड़े हुए हैं। कई संतों और धार्मिक गुरुओं ने इस पद के लिए उनके चयन पर सवाल उठाए हैं। शांभवी पीठ के पीठाधीश्वर, स्वामी आनंद स्वरूप महाराज ने किन्नर अखाड़े की मान्यता पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “पिछले कुंभ में किन्नर अखाड़े को मान्यता देना महापाप था। यह कुंभ के महत्व और इसकी परंपराओं का मजाक बनाने जैसा है।”
कई अन्य संतों ने भी इस निर्णय की आलोचना की और इसे परंपरा से भटकाव बताया। कुछ लोगों का मानना है कि कुंभ मेले की पवित्रता और धार्मिकता पर इस प्रकार के निर्णयों का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
किन्नर अखाड़े का समर्थन और ममता का योगदान
हालांकि विवादों के बीच, किन्नर अखाड़ा अपनी इस पहल का पूरी तरह समर्थन कर रहा है। अखाड़ा के संतों का मानना है कि यह कदम समाज में समानता और समावेशिता के लिए उठाया गया है। ममता की तपस्या और उनकी आध्यात्मिकता के प्रति निष्ठा ने उन्हें इस सम्मान के लिए योग्य बनाया।
ममता ने भी आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैंने स्वयं को मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया है। जो लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं, वे मेरी तपस्या और समर्पण को नहीं समझ सकते।”
महामंडलेश्वर बनने का अर्थ
महामंडलेश्वर का दर्जा भारतीय धार्मिक व्यवस्था में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसे पाने के लिए व्यक्ति को गहन तपस्या, साधना और ज्ञान अर्जित करना होता है। ममता का यह सफर उनकी आध्यात्मिकता और प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
ममता कुलकर्णी का संदेश
ममता ने समाज और युवाओं को एक खास संदेश भी दिया। उन्होंने कहा, “जीवन की सच्ची खुशी बाहरी सुखों में नहीं, बल्कि अपने अंदर शांति और संतोष पाने में है। मैंने बॉलीवुड की चकाचौंध से बहुत कुछ सीखा और अब मैं उस अनुभव को आध्यात्मिकता में बदलकर समाज को सेवा देने के लिए तत्पर हूं।”
नई पहचान, नया जीवन
ममता कुलकर्णी का बॉलीवुड से लेकर महामंडलेश्वर बनने तक का सफर, उनकी व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास की यात्रा है। विवादों और आलोचनाओं के बावजूद, ममता का यह बदलाव समाज को एक नई दिशा और प्रेरणा देता है। उनकी कहानी यह दिखाती है कि चाहे कोई व्यक्ति कितनी भी बड़ी ग्लैमर की दुनिया से आया हो, आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम के जरिए किसी भी मुकाम को हासिल किया जा सकता है।
ममता कुलकर्णी आज आध्यात्मिकता और मानव सेवा के मार्ग पर चलकर न केवल अपनी पहचान को फिर से परिभाषित कर रही हैं, बल्कि समाज को भी यह सिखा रही हैं कि असली खुशी स्वयं को पहचानने और अपने अंदर की शक्ति को जागृत करने में है।