
लातेहार, 15 जनवरी 2025: जिला मुख्यालय स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में छोटे भैया-बहनों को सुवर्णप्राशन की पहली खुराक पिलाई गई। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत पलामू विभाग निरीक्षक नीरज कुमार लाल, प्रधानाचार्य अरुण कुमार चौधरी एवं सह प्रांत शिशु वाटिका प्रमुख श्रीमती गीता कुमारी द्वारा दीप प्रज्वलन और सरस्वती माता के चित्र पर पुष्पार्चन से की गई।
यह कार्यक्रम शिशुओं के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, प्राणिक और आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण था, जिसे 15 जनवरी 2025 को पुष्प नक्षत्र में आयोजित किया गया। इस अवसर पर शिशु वाटिका में शिशुओं को सुवर्णप्राशन की पहली खुराक पिलाई गई।

सुवर्णप्राशन संस्कार विद्या भारती के द्वारा संचालित शिशु वाटिका के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में देखा जाता है। श्रीमती गीता कुमारी ने इस कार्यक्रम के महत्व को बताते हुए कहा कि शिशु वाटिका का मुख्य उद्देश्य शिशुओं का सर्वांगीण विकास करना है। यह संस्कार शिशुओं की शारीरिक और मानसिक सेहत को बेहतर बनाने में मदद करता है, जो विशेष रूप से वात, पित्त और कफ जैसे त्रिदोषों से उन्हें मुक्त रखने में सहायक होता है।
कार्यक्रम में विभाग निरीक्षक श्री नीरज कुमार लाल ने इस संस्कार के सनातन धर्म में महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि सुवर्णप्राशन संस्कार हमारे प्राचीन वेदों और शास्त्रों में वर्णित 16 संस्कारों में से एक है। इस संस्कार को हमारे पूर्वजों ने जातकर्म संस्कार के रूप में जाना और इसे शिशुओं के जीवन में महत्वपूर्ण माना गया।

प्रधानाचार्य अरुण कुमार चौधरी ने इस अवसर पर शिशुओं को दी जाने वाली सुवर्णप्राशन की खुराक के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस खुराक में पंचगव्य घृत, मधु, सुवर्ण और भस्म शामिल होते हैं, जो शिशुओं को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं। यह खुराक विशेष रूप से शिशुओं के त्रिदोषों को संतुलित करने में मदद करती है और उनके समग्र विकास में सहायक होती है।
इस कार्यक्रम में विद्यालय के सभी आचार्य और दीदी जी के साथ-साथ शिशु वाटिका के अभिभावक भी उपस्थित रहे। सभी ने मिलकर छोटे भैया-बहनों को सुवर्णप्राशन की पहली खुराक दी और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।