पैगंबर मोहम्मद की आमद मरहबा से गुंजा शहर
- पैगंबर मोहम्मद साहब न होते तो कुछ भी न होते : हाफिज शेर मोहम्मद
- पुलिस निरीक्षक सह थाना प्रभारी रंधीर कुमार व एएसआई रामप्रसाद राम सदलबल सुरक्षा की कमान संभाले हुए थे
चंदवा:- ईद – ए – मिलादुन्नबी (हजरत मुहम्मद साहब के जन्म दिवस) के मौके पर मुहम्मद साहब के दिवानों ने भारी बारिश में भीगकर जुलूस निकाला,
पैगंबर मोहम्मद की आमद मरहबा, पत्ती पत्ती फूल फूल या रसूल या रसूल के नारों से गूंजा शहर, कामता, शुक्रबजार, बेलवाही, परसाही, कुजरी समेत अन्य गांवों के मुस्लिम धर्मावलंबियों ने जुलूस निकाला जो कामता चेकनाका, हरैया मोड़, रेलवे क्रासिंग, शुभाष चौंक, मेन रोड, थाना, शुभाष चौंक होते हुए बस स्टैंड पहुंचा यहां कुरआन शरीफ की तेलावत से ईद मिलादुन्नबी की महफ़िल का आगाज हाफिज शेर मोहम्मद कादरी ने की फात्हा सलाम पढ़ा, मौलाना ज्याउल हक, अब्दुल कलाम कादरी, मुफ्ती अब्दुल मन्नान कलमी ने मोहम्मद साहब के जिवनी पर तकरीर की।
जुलूस की अगुवाई ग्यास खान, हाफिज शेर मोहम्मद कादरी, बाबर खान, मौलाना ज्याउल हक, इरफान फानु संयुक्त रूप से कर रहे थे। हाफिज शेर मोहम्मद कादरी ने अपने तकरीर में कहा कि पैगंबर मोहम्मद साहब न होते तो कुछ भी न होते न जमीं होती न आसमां होता न चांद सितारे होते न हम होते न आप होते.
उन्होंने आगे कहा कि 12 रबी उल अव्वल का चांद दिखने के साथ ही शुरू हो गई, सीरत ए पाक (पैगंबर की जीवनी) पर आधारित तकरीर और बयान किए , इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद (सअ) की पैदाइश का दिन मस्जिदों, खानकाहों, मजारों से लेकर मुहल्लों में अनेक आयोजन किए जाते है.
हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाह) का जन्म मक्का में हुआ, उस समय दुनिया भर में औरतों की स्थिति दयनीय थी, खुद अरब में नवजात बेटियों को जिंदा दफन करने की परंपरा थी, हजरत मोहम्मद जो धर्म लेकर आए थे उसे संपूर्ण कहा गया है, संपूर्ण इस मायने में कि इसमें मानव जीवन से जुड़े हर पहलू की बाबत बताया गया है,
कुरआन में इस बाबत आया है कि और (इनका हाल यह है कि) जब इनमें किसी को बेटी होने की शुभ सूचना मिलती है, तो उसके चेहरे पर कलौंस छा जाती है और वह जी ही जी में कुंढ़कर रह जाता था, इस घृणित परंपरा को खत्म कराने का सेहरा हजरत मोहम्मद के सर बंधता है, यही नहीं आपने विभिन्न अवसरों पर औरतों को उनका पूरा हक देने, उनसे अच्छा बर्ताव करने तथा पूरा खयाल रखने के बारे में हिदायतें दीं, बेटियों के बारे में वे कहते हैं वह औरत बरकत वाली है जो लड़की को पहले जन्म दे,
इसी तरह आपने बेटियों को मां-बाप का दुख बांटने वाली ठहराते हुए कहा कि बेटियों को नापसंद न करो, बेशक बेटियां गमगुसार हैं और अजीज।
लड़का-लड़की के बीच भेदभाव को भी आपने गलत करार दिया। इस बारे में एक घटना का जिक्र करना बेहतर होगा। पैगंबर हजरत मोहम्मद के साथी हजरत अनस बिन मालिक फरमाते हैं कि एक शख्स आपके पास बैठा था कि उसका बेटा आया। उसने बेटे को बोसा दिया और अपनी गोद में बिठा लिया। फिर उसकी बच्ची आई जिसे उसने अपने सामने बिठाया। रसूल ने फरमाया तुमने इन दोनों (बेटे और बेटी) के दरमियान बराबरी से काम क्यों नहीं लिया। मोहम्मद साहब की बात सुनकर वह काफी आसहज हुआ.
अंत में देश और छेत्र की तरक्की अमन की दुआ मांगी गई।
पुलिस निरीक्षक सह थाना प्रभारी रंधीर कुमार व एएसआई रामप्रसाद राम सदलबल सुरक्षा की कमान संभाले हुए थे.
मौके पर हाफिज शेर मोहम्मद, ग्यासुद्दीन खान, बाबर खान ,अब्दुल कलाम कादरी, मुफ्ती अब्दुल मन्नान कलमी, इरफान फानु खान, मौलाना अतौर रहमान, हैदर अली, सरफुद्दीन राइन ,रिजवान अंसारी ,नसरुद्दीन राइन ,सुरेश मियां ,अफरोज आलम ,अब्दुल सलाम अंसारी ,रमजान सांइं चिस्ती, मोहम्मद कलीम, मोहम्मद सलमान, मोहम्मद रिजवान, मौलाना अब्दुल सलाम ,असद मियां, नौशाद ट्रेलर ,शमशाद अंसारी समेत बड़ी संख्या में मुस्लिम धर्मावलंबियों ने शिरकत की।