अगर इलेक्टोरल बांड घोटाला है, तब कैश में लिया चंदा एवं इलेक्टोरल ट्रस्ट क्या है?- जवाब तो देना होगा।

अगर इलेक्टोरल बांड घोटाला है, तब कैश में लिया चंदा एवं इलेक्टोरल ट्रस्ट क्या है?- जवाब तो देना होगा।

Views: 111
0 0
Read Time:15 Minute, 51 Second
अगर इलेक्टोरल बांड घोटाला है, तब कैश में लिया चंदा एवं इलेक्टोरल ट्रस्ट क्या है?- जवाब तो देना होगा।

प्रभाकर कुमार श्रीवास्तव

क्षेत्रीय संपादक

जब से माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बांड को अवैध घोषित किया गया है ,तब से लेकर आज तक राजनीतिक उठा पटक कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। विपक्ष के नेता लगातार भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते नजर आ रहे हैं। और यह आरोप लगा रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने सरकारी एजेंसियों( ई डी एवं सीबीआई) का डर दिखाकर इलेक्टोरल बांड के जरिए चंदा लेने का काम किया है,जो एक भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। वहीं दूसरी ओर बीजेपी खुलकर विपक्ष के आरोपों का खंडन भी कर रही है। बीजेपी विपक्षी पार्टियों पर निराधार आरोप लगाने का दावा कर रही है, और खुलकर जनता को बता रही है कि अगर एजेंसियों के माध्यम से चंद आया होता,तब फिर विपक्षी पार्टियों के पास इलेक्टोरल बांड के माध्यम से पैसा आने का सवाल ही नहीं उठता।

जबकि लगभग सोलह हजार करोड़ के बॉन्ड में से लगभग आठ हजार करोड़ ही बीजेपी को प्राप्त हुए हैं।बाकी सारे पैसे विपक्षी पार्टियों को प्राप्त हुए हैं। ऐसे में विपक्षी पार्टियां बिना आधार के मोदी सरकार को बदनाम करने का काम कर रही है। बीजेपी का कहना है कि हमारी सरकार ने इस प्रक्रिया को बैंकिंग सिस्टम से जोड़ने का काम किया है,ताकि भारत की अर्थव्यवस्था में इसकी पारदर्शिता बनी रहे। हालांकि आम जनता का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो अभी तक इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड एक घोटाला है या फिर आजादी के बाद से ही चली आ रही एक पुरानी परंपरा है। आज हमें यह जानना बहुत जरूरी है, कि आखिर इस इलेक्टोरल बांड या फिर राजनीतिक चंदे का इतिहास आखिर है क्या। क्या इलेक्टोरल बांड के नाम पर चंदे का खेल नरेंद्र मोदी सरकार ने शुरू किया है,या फिर यह एक शुरुआती परंपरा के साथ-साथ एक ऐसी परंपरा है जो कि वैध या अवैध तरीके से हमारे भारत देश में कुंडली मारकर बैठी हुई है। और भारतीय अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह चाटने का काम कर रही है। यह तो बिल्कुल सत्य बात है कि राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है, वह भी काफी भारी मात्रा में।अगर हम इसे अस्वीकार करते हैं तो मान लीजिए कि हमने इस सत्य के साथ अन्याय किया है।

इस बात को कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी के साथ-साथ कई नेताओं ने खुलकर स्वीकार किया है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने खुलकर मीडिया में यह बातें बोली हैं कि हम चुनाव प्रचार नहीं कर पा रहे हैं,और ना ही हम एक जगह से दूसरे जगह जा पा रहे हैं। क्योंकि मोदी सरकार ने कांग्रेस पार्टी का अकाउंट फ्रीज कर दिया है। हालांकि आजादी के बाद सन 1947 से 1967 ई तक देश में कांग्रेस पार्टी ही एकमात्र सर्वे सर्वा पार्टी थी। उस समय सरकार ने भारत में व्यापार करने के लिए लाइसेंस प्रथा की शुरुआत की। जिसे हम कह सकते हैं कि उस समय लाइसेंस राज की शुरुआत हो गई थी। हालांकि कांग्रेस पार्टी का दावा था कि अपने कार्यकर्ताओं के द्वारा मिले चंदे से ही पार्टी चुनाव प्रचार का कार्य करती है। परंतु यह सवाल उठना लाजमी है कि, क्या कार्यकर्ताओं द्वारा दिया गया चंदा काफी था या फिर कंपनियों को लाइसेंस देने के नाम पर चंदा वसूली का काम खुलकर किया जाता था। क्या उस समय कांग्रेस द्वारा “चंदा दो लाइसेंस लो” के तर्ज पर सरकार चलाया जा रहा था। इन सभी बातों का स्पष्टीकरण कांग्रेस पार्टी को ही देना होगा। क्योंकि देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू से लेकर स्वर्गीय इंदिरा गांधी सरकार की इस मुद्दे पर स्पष्ट अवधारणा नहीं थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया धीरे-धीरे कॉरपोरेट घरानों से भी चंदा लेने की परंपरा की शुरुआत हो गई। जब कांग्रेस पार्टी दो भागों में बट गई,तब स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने 1969 ईस्वी में ही 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। आज आम जनता को यही पता है कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने बैंकों की सुविधा को आम जनता तक पहुंचाने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।परंतु कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण इसलिए किया था कि जब सारे बैंक सरकार की निगरानी में आ जाएंगे, तब सरकार द्वारा विपक्षी पार्टियों को मिल रहे कॉर्पोरेट चंदे पर नजर रखना आसान हो जाएगा।

कांग्रेस पार्टी के विभाजन के बाद स्वर्गीय इंदिरा गांधी काफी परेशान थी, और वह नहीं चाहती थी कि किसी दूसरे पार्टी को कॉर्पोरेट चंदा मिले। और इसी वजह से 1969 में ही इंदिरा गांधी ने कॉर्पोरेट चंदे पर बैन लगा दिया। कॉर्पोरेट चंदे पर बैन लगते ही काले धन का आगमन खुलकर होने लगा। और ब्रीफकेस में भर भर कर पैसों के लेनदेन का प्रचलन चंदे के रूप में शुरू हो गया। कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी के उस समय के सरकार को ब्रीफकेस सरकार कहना अनुचित नहीं होगा। अगर आज कांग्रेस पार्टी इस सच्चाई से मुकरती है तो उसे जनता के सामने स्पष्ट करना होगा कि आखिर पार्टी चुनाव प्रचार का काम कैसे करती थी। और चुनाव कैसे लड़ती थी। क्योंकि बिना पैसे के चुनाव लड़ना संभव नहीं है। जिसे राहुल गांधी ने भी स्वीकार किया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी की सरकार इसी ब्रीफकेस के बलबूते चल रही थी। आगे चलकर जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तब सन 1984 में राजीव गांधी ने कॉर्पोरेट चंदे पर लगा बैन हटा दिया। परंतु उसके बावजूद भी कॉर्पोरेट घरानों ने खुलकर अकाउंट में चंदा देने पर डर को महसूस किया,क्योंकि स्वर्गीय राजीव गांधी सरकार द्वारा इससे संबंधित टैक्स राहत को पारदर्शी नहीं किया गया।

जिसके कारण चंदे पर बैन हटने के बावजूद कॉर्पोरेट घरानों ने कैश में ही चंदा देना ज्यादा उचित समझा। ताकि इनकम टैक्स विभाग की कार्रवाई से बचा जा सके। जैसे-जैसे कैश से चंदा का सिलसिला जारी रहा वैसे-वैसे भारत की राजनीति में बाहुबली राजनीति की शुरुआत हो गई। नेताओं ने चंदे में मिले पैसों का कुछ हिस्सा खुद के विकास के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। क्योंकि राजनीतिक पार्टियों को मिल रहे चंदे में किसी भी प्रकार की प्रदर्शित नहीं थी। 1991 में भारत सरकार ने देश की स्थिति को ध्यान में रखते हुए एलपीजी सिस्टम की शुरुआत की, और लाइसेंस प्रथा को खत्म कर दिया गया। आगे चलकर यूपीए वन की सरकार द्वारा राजनीतिक चंदा लेने के लिए इलेक्टोरल ट्रस्ट की शुरुआत की गई, और ब्रीफकेस की जगह अकाउंट का सिलसिला शुरू हो गया। इस इलेक्टोरल ट्रस्ट की प्रक्रिया में कारपोरेट घराने द्वारा चंदा देने की शुरुआत की गई ।एवं सरकार द्वारा कुछ मानक तय किए गए। उसी के अनुसार सभी पार्टियों को उनकी हैसियत के हिसाब से चंदे में हिस्सा मिलने लगा। इलेक्टोरल ट्रस्ट में सरकार द्वारा यह भी तय किया गया कि कोई भी कंपनी अपने प्रॉफिट का मात्र साढ़े सात प्रतिसत ही चंद के रूप में दे सकती है। कांग्रेस पार्टी को इस प्रक्रिया से मिल रहे चंदे में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई,और खुलकर सत्ता में रहते हुए चंदे का उपयोग किया गया। हालांकि सन 2013 तक इस प्रक्रिया द्वारा कुल लगभग 5986 करोड रुपए प्राप्त हुए।

जिसमें कांग्रेस पार्टी को 2354 करोड़ एवं भाजपा को 1148 करोड रुपए प्राप्त हुए। बचे हुए शेष राशियों को अन्य राजनीतिक पार्टियों में बांटा गया। परंतु इनमें आश्चर्य जनक बात यह हुई कि इलेक्टोरल ट्रस्ट से प्राप्त कुल राशि में से, चौरासी प्रतिसत राशि का सोर्स पता नहीं चल पाया कि यह चौरासी प्रतिसत राशि किनके द्वारा प्राप्त की गई है। 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार ने फाइनेंस एक्ट सहित कई कानूनों में संशोधन कर इलेक्टोरल ट्रस्ट के ही तर्ज पर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लेने की प्रक्रिया को शुरू किया। जिसमें कोई भी व्यक्ति या कंपनी एसबीआई बैंक के निर्धारित उनतीस शाखाओं से बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा दे सकता है।अभी तक इस इलेक्टोरल बांड के माध्यम से लगभग सोलह हजार करोड रुपए का चंदा प्राप्त हुआ है। जिसमें बीजेपी को लगभग आठ हजार करोड़ का चंदा प्राप्त हुआ। शेष लगभग आठ हजार करोड रुपए विपक्षी पार्टियों को प्राप्त हुए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अब इस इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध घोषित कर दिया है।अगर देखा जाए तब हम यह पाते हैं कि, सत्ता पर काबिज राजनीतिक पार्टियों को ही ज्यादा चंदा मिलना लाजमी है। क्योंकि कंपनियां जानती हैं कि सरकार से ही उनका काम है। कंपनियां चंदा अपने अनुरूप नीतियां बनाने के लिए ही देती हैं। और हमें इस सत्य को स्वीकार करना ही पड़ेगा। कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ अन्य विपक्षी पार्टियों को भी यह जवाब जरूर जनता को देना चाहिए कि, जब वह सत्ता में थे, तब यही इलेक्टरल ट्रस्ट एवं कैश से मिल रहे चंदे पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। फिर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाई गई इलेक्टोरल बांड से प्राप्त चंदे पर उन्हें परेशानी क्यों हो रही है।जबकि इलेक्टरल बॉन्ड से सभी विपक्षी पार्टियों को भी पैसे मिले हैं। और उन कंपनियों से भी मिले हैं, जिनसे बीजेपी पार्टी को इलेक्टोरल बांड के माध्यम से चंदा मिला है।

आखिर किस आधार पर विपक्षी पार्टियां,विशेष कर कांग्रेस पार्टी इस इलेक्टोरल बांड को एक घोटाला का रूप देने को आतुर है। कांग्रेस को आम जनता को यह जवाब देना होगा कि अगर इलेक्टोरल बॉन्ड एक घोटाला है,तब इलेक्टोरल ट्रस्ट से मिल रहे चंदे को किस रूप में देखा जाए। कांग्रेस पार्टी को यह भी जवाब देना होगा की कैश से मिल रहे चंदे का हिसाब किताब कौन देगा। कांग्रेस पार्टी को इलेक्टोरल ट्रस्ट से मिले चौरासी प्रतिसत चंदे के अज्ञात सोर्स का भी खुलासा करना होगा।अब तो सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से यह जानकारी स्पष्ट हो गई की इलेक्टोरल बांड के जरिए किन-किन कंपनियों ने, किन-किन राजनीतिक पार्टियों को,कितना चंदा दिया है। विपक्षी पार्टियों, खासकर कांग्रेस पार्टी को आम जन को यह जवाब देना होगा कि,अगर इलेक्टोरल बांड एक घोटाला है, तो वो इसके तहत मिली राशि का क्या करेंगे। क्या इसे भारत सरकार के खजाने में जमा करेंगे, सामाजिक कार्यों में लगाएंगे ,कंपनियों को वापस कर देंगे,या फिर उसी पैसे से 2024 का चुनाव प्रचार करेंगे। अर्थात चुनाव लड़ने का काम करेंगे। खैर यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। परंतु इसमें कोई शक नहीं कि विपक्षी पार्टियों ने खासकर कांग्रेस पार्टी ने मीठा-मीठा गप गप और तीता तीता थू के चरितार्थ को मूर्त रूप देने का काम किया है।

Loading

अगर इलेक्टोरल बांड घोटाला है, तब कैश में लिया चंदा एवं इलेक्टोरल ट्रस्ट क्या है?- जवाब तो देना होगा।

About Post Author

NEWS APPRAISAL

It seems like you're looking for information or an appraisal related to news. However, your request is a bit vague. News can cover a wide range of topics and events. If you have a specific news article or topic in mind that you'd like information or an appraisal on,
Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

More From Author

कुर्मी महासभा गढ़वा के तत्वाधान में जिलास्तरीय बैठक हुआ संपन्न.

कुर्मी महासभा गढ़वा के तत्वाधान में जिलास्तरीय बैठक हुआ संपन्न.

पीसीसी सड़क के बीचो-बीच रामनवमी का झंडा लगाने से आवागमन बाधित: ग्रामीण परेशान

पीसीसी सड़क के बीचो-बीच रामनवमी का झंडा लगाने से आवागमन बाधित: ग्रामीण परेशान

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About Author

It seems like you're looking for information or an appraisal related to news. However, your request is a bit vague. News can cover a wide range of topics and events. If you have a specific news article or topic in mind that you'd like information or an appraisal on,
administrator

Web Stories

ताजा खबरें

local news

add

Post