नावा बाजार/पलामू:- पलामू जिले के नावा बाजार प्रखंड अंतर्गत बसना पंचायत का पंचायत भवन वर्षों से ताले में जकड़ा पड़ा है। पंचायत भवन पर लटकते ताले पंचायत सचिवों और अधिकारियों की लापरवाही की गवाही दे रहे हैं। स्थिति यह है कि पंचायत से मिलने वाली योजनाएं और सुविधाएं कागज़ों में कैद होकर रह गई हैं।
पंचायत भवन में लटकता ताला, योजनाएं बंद कमरे में
ग्राम पंचायत बसना का पंचायत भवन ग्रामीणों के लिए योजनाओं का केंद्र होना चाहिए, लेकिन यहां हमेशा ताला लटका रहता है। ग्रामीणों का कहना है कि सचिव और पंचायत सेवक की लापरवाही से पीएम आवास, मनरेगा, फसल बीमा जैसी योजनाओं की जानकारी और आवेदन प्रक्रिया ठप पड़ी है।
पंचायत भवन को प्रज्ञा केंद्र घोषित किया गया है, ताकि ग्रामीणों को सुविधा मिल सके, लेकिन कई सालों से यहां काम ही नहीं हो रहा।
मुखिया और पंचायत सेवक का रवैया भी निराशाजनक है। उनका कहना है कि “जिन्हें काम कराना है, वे बाहर के प्रज्ञा केंद्रों से करवा लें।” इस कारण ग्रामीणों को भटकना पड़ रहा है।
जानकारी का अभाव
पंचायत भवन में किसी भी योजना की जानकारी प्रदर्शित नहीं की जाती। पीएम आवास समेत अन्य योजनाओं को लेकर बड़ी संख्या में ग्रामीण पंचायत कार्यालय का रुख करते हैं, लेकिन रोजगार सहायक और सचिव की ओर से सूचियों का कोई खुलासा नहीं किया जाता। अधिकारी जब आते भी हैं तो केवल फोन पर सूचना देकर ही काम चलाते हैं।
पंचायत भवन सिर्फ औपचारिकता तक सीमित
ग्रामीणों का आरोप है कि पंचायत भवन साल में केवल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ही खोला जाता है। सामान्य दिनों में यह हमेशा बंद रहता है। छोटे-छोटे कामों के लिए भी ग्रामीणों को ब्लॉक कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है। जबकि पंचायत सचिव का दायित्व है कि ग्राम स्तर पर ही लेखा-जोखा, परिवार रजिस्टर की नकल, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, जॉब कार्ड जारी करने जैसे कार्य पूरे हों।
ब्लॉक बन गया ठिकाना
पंचायत भवन के बंद होने से ग्रामीण सीधे ब्लॉक का रुख करते हैं, लेकिन ब्लॉक से भी उन्हें वापस लौटा दिया जाता है। पंचायत राज व्यवस्था के अनुसार जिला, जनपद और ग्राम पंचायत कार्यालय नियमित खुलने चाहिए, लेकिन बसना पंचायत का कार्यालय कई वर्षों से बंद पड़ा है। इससे ग्रामीणों में नाराजगी है।
हाईटेक पंचायत भवन बना बेकार
गांवों को सशक्त और हाईटेक बनाने के लिए पंचायत भवनों का निर्माण किया गया था। हाल ही में पंचायत सहायकों की नियुक्ति भी की गई है ताकि ग्रामीणों को कामकाज में सुविधा मिले। पंचायत सहायकों को मनरेगा की हाजिरी, ग्रामसभा से जुड़े भुगतान और अन्य कार्यों की जिम्मेदारी दी गई है,लेकिन न तो पंचायत भवन खुलते हैं और न ही सचिव व सहायक सक्रिय रहते हैं।ग्रामीणों का कहना है कि योजनाएं कागज़ों में ही सिमट गई हैं। छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए भी निजी प्रज्ञा केंद्रों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिनका पता पंचायत सचिव और मुखिया खुद बताते हैं।
पंचायत ग्रामीणों की मांग
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि पंचायत भवन को नियमित रूप से खोला जाए और पंचायत सचिव व सहायकों की जवाबदेही तय की जाए। उनका कहना है कि अगर पंचायत भवन बंद ही रहने हैं तो फिर इन्हें बनाने का कोई मतलब नहीं है।