घाघरा (गुमला):- गुमला जिले के घाघरा प्रखंड के नौडीहा महुआ टोली गांव का एक गरीब परिवार सुनील लोहरा आज भी अपने लिए छत की तलाश में भटक रहा है। मजबूरी ऐसी कि इनके पास रहने के लिए खुद का मकान नहीं है कई वर्षों से अपने पांच छोटे-छोटे बच्चों के साथ अपने बड़े भाई की मुर्गी फार्म में रहने को विवश है, जिनका उम्र 7 वर्ष से 16 वर्ष के बीच है ।हालात इतने दयनीय हैं कि परिवार के सदस्य जमीन पर सोने को मजबूर हैं। रात-दिन उन्हें सांप, बिच्छू और जहरीले कीड़ों का डर बना रहता है। छोटे-छोटे बच्चे भी इसी असुरक्षित वातावरण में रहने को विवश हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कई समृद्ध परिवारों को भी पक्का घर मिला है, लेकिन वास्तव में जरूरतमंद यह परिवार अब तक किसी योजना का लाभ पाने से वंचित है। स्थिति न केवल प्रशासनिक संवेदनहीनता को दर्शाती है, बल्कि सरकारी योजनाओं की हकीकत पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
बिना पहचान पत्र शिक्षा से वंचित मासूम
परिवार की सबसे बड़ी समस्या इसके नाबालिग बच्चों का भविष्य है। 5 साल पहले मां के गुजर जाने के बाद पिता अकेले बच्चों की परवरिश कर रहे हैं, लेकिन बच्चों के पास न जन्म प्रमाण पत्र है, न आधार कार्ड। इस कारण वे किसी भी सरकारी स्कूल में दाखिला नहीं ले पा रहे हैं। न तो शिक्षा का अधिकार मिल रहा है और न ही किसी जनकल्याणकारी योजना का लाभ,पहचान पत्र न होने की वजह से ये मासूम न स्कूल की चौखट तक पहुंच पाए हैं और न ही राशन एवं चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ उठा पा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और प्रशासन को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए।
न राशन कार्ड, न उज्ज्वला योजना का लाभ
इस गरीब परिवार के पास राशन कार्ड तक नहीं है। यही कारण है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली से मिलने वाला सस्ता अनाज भी उन्हें उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना – प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का लाभ भी परिवार को नहीं मिला।नतीजा यह है कि परिवार को आज भी लकड़ी जलाकर ही चूल्हा जलाना पड़ता है। बरसात के दिनों में सूखी लकड़ी मिलना बेहद कठिन हो जाता है। गीली लकड़ियों से भोजन पकाने में घंटों लग जाते हैं और धुएं के कारण बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है।
मानवता को झकझोर रही तस्वीर
नौडीहा महुआ टोली के इस परिवार की स्थिति समाज और व्यवस्था दोनों के लिए एक आईना है। सरकारी रजिस्टरों में योजनाओं की लंबी सूची है, लेकिन असल जिंदगी में एक गरीब परिवार छत, भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकारों से वंचित है।व्यवस्था की सुस्ती और कागजी अड़चनों ने इस परिवार की पीड़ा को और गहरा कर दिया है। सवाल उठना लाज़िमी है कि जब योजनाएं गरीबों के लिए बनी हैं, तो फिर यह परिवार किन कारणों से अब तक लाभ से वंचित है।