
रांची। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने एक बार फिर आदिवासी अस्मिता के मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि जब तक सरना धर्म कोड को आधिकारिक मान्यता नहीं दी जाती, तब तक राज्य में जातीय जनगणना नहीं होने दी जाएगी। इस संबंध में मंगलवार को झामुमो के महासचिव सह प्रवक्ता विनोद पांडेय ने रांची में एक प्रेस कांफ्रेंस कर यह घोषणा की।
पार्टी ने 9 मई को पूरे झारखंड में एक दिवसीय राज्यव्यापी धरना-प्रदर्शन का आयोजन करने का फैसला किया है। इसके तहत राज्य के सभी जिला मुख्यालयों पर पार्टी कार्यकर्ता इकट्ठा होकर केंद्र सरकार की चुप्पी के खिलाफ विरोध दर्ज कराएंगे। झामुमो का यह आंदोलन सरना धर्म कोड को जनगणना कॉलम में शामिल कराने की मांग को लेकर है।
विनोद पांडेय ने कहा कि झारखंड की विधानसभा ने 11 नवंबर 2020 को विशेष सत्र बुलाकर सर्वसम्मति से ‘सरना आदिवासी धर्म कोड’ का प्रस्ताव पारित किया था और इसे केंद्र सरकार को भेजा गया था। लेकिन लगभग पांच वर्ष बीत जाने के बावजूद केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव पर कोई निर्णय नहीं लिया है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक प्रस्ताव नहीं, बल्कि झारखंड की अस्मिता, पहचान और आदिवासियों के अस्तित्व से जुड़ा मामला है।
उन्होंने कहा कि सरना धर्म के अनुयायी प्रकृति पूजक होते हैं और वे स्वयं को किसी स्थापित धर्म जैसे हिंदू, मुस्लिम या ईसाई के अंतर्गत नहीं मानते। ऐसे में उनके लिए एक अलग धार्मिक पहचान की आवश्यकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार आदिवासियों की धार्मिक मान्यता को लेकर उदासीन रवैया अपना रही है, जो चिंताजनक है।
पांडेय ने कहा कि जब आदिवासियों की धार्मिक पहचान ही स्पष्ट नहीं होगी, तो जातीय जनगणना का औचित्य ही खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जनगणना में सरना धर्म कोड के लिए एक अलग कॉलम होना चाहिए, जिससे आदिवासियों की सही संख्या और धार्मिक पहचान दर्ज हो सके।
झामुमो महासचिव ने पार्टी के सभी जिला अध्यक्षों, सचिवों, संयोजकों, महानगर इकाइयों और केंद्रीय समिति के पदाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे 9 मई को होने वाले इस विरोध कार्यक्रम की पूरी तैयारी करें। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे अधिक से अधिक संख्या में धरना-प्रदर्शन में भाग लें और इस मुद्दे को जन-आंदोलन का रूप दें।
उन्होंने कहा कि झारखंड की जनता खासकर आदिवासी समुदाय अब और इंतजार नहीं करेगा। केंद्र सरकार को सरना धर्म कोड पर जल्द निर्णय लेना होगा, अन्यथा राज्य में बड़े आंदोलन की शुरुआत होगी।
झामुमो की यह घोषणा राज्य की राजनीति में एक बार फिर आदिवासी अस्मिता के सवाल को केंद्र में ले आई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इस मुद्दे पर अन्य राजनीतिक दलों की क्या प्रतिक्रिया रहती है और केंद्र सरकार इस संवेदनशील विषय पर क्या रुख अपनाती है।