संत शिरोमणि श्री रविदास जी महाराज: सच्चे समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रेरणास्रोत

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संत शिरोमणि श्री रविदास जी महाराज: सच्चे समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रेरणास्रोत

लातेहार: जिला परिषद उपाध्यक्ष अनीता देवी ने लातेहारवासियों को संत शिरोमणि श्री रविदास जी महाराज की जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने कहा कि संत रविदास जी न केवल महान संत थे, बल्कि एक सच्चे समाज सुधारक भी थे। उनका पूरा जीवन जाति-पाति के भेदभाव को मिटाने और समाज में समानता स्थापित करने के लिए समर्पित था।

काशी में हुआ संत रविदास जी का जन्म

संत रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। उनके पिता जूता बनाने का काम करते थे, और बचपन से ही उन्होंने अपने पारिवारिक व्यवसाय को अपनाया। इसके साथ ही वे भक्ति और संत विचारधारा में भी लीन रहते थे। उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि व्यक्ति का जन्म या व्यवसाय उसे महान नहीं बनाता, बल्कि उसके विचार, लोकहित में किए गए कार्य और सदव्यवहार ही उसे श्रेष्ठ बनाते हैं।

जाति-पाति के भेदभाव के खिलाफ आवाज

संत रविदास जी ने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव का खुलकर विरोध किया। उन्होंने सभी मनुष्यों को एक समान मानते हुए समाज को एकता और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने अपनी भक्ति और उपदेशों के माध्यम से यह बताया कि ईश्वर के लिए सभी भक्त समान हैं और किसी भी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति या जाति, ईश्वर भक्ति के मार्ग में बाधा नहीं बन सकती।

आध्यात्मिक शिक्षा और राम भक्ति

संत रविदास जी ने आचार्य शारदानंद से अपनी शिक्षा पूर्ण की और धर्माचार्य रामानंद से दीक्षा ग्रहण की। गुरु के आदेश से वे श्री राम भक्ति में लीन हो गए। उनके भक्ति भजनों ने न केवल हिंदू समाज बल्कि सिख धर्म के अनुयायियों को भी प्रभावित किया। उनके रचित भजनों को सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान दिया गया है, जो उनकी आध्यात्मिक गहराई और विचारों की व्यापकता को दर्शाता है।

मीराबाई भी हुईं प्रभावित

संत रविदास जी के विचार और भक्ति से चित्तौड़गढ़ की महारानी मीराबाई भी अत्यधिक प्रभावित हुईं और उन्होंने उनसे दीक्षा ग्रहण की। संत रविदास जी ने भक्ति आंदोलन को नई दिशा दी और भजन-कीर्तन के माध्यम से समाज को जागरूक किया। उनके भजनों में आध्यात्मिकता के साथ-साथ समाज में प्रेम, एकता और समानता का संदेश भी निहित था।

काशी में भव्य रूप से मनाई जाती है जयंती

हर वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन काशी के सीर गोवर्धनपुर स्थित संत रविदास मंदिर में भव्य आयोजन किया जाता है। इस दिन उनके अनुयायी भजन-कीर्तन कर उनकी शिक्षाओं का प्रचार करते हैं। देशभर में उनकी जयंती को उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिससे उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाया जा सके।

संत कबीर के गुरु भाई थे संत रविदास

संत रविदास को संत रैदास के नाम से भी जाना जाता है। वे संत कबीर के गुरु भाई थे और दोनों ही भक्ति आंदोलन के महान संत माने जाते हैं। संत रविदास जी ने भक्ति और समाज सुधार के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह आज भी समाज के लिए प्रेरणादायक है।

संत रविदास के विचारों को अपनाने की जरूरत

जिप उपाध्यक्ष अनीता देवी ने कहा कि संत रविदास जी की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने समानता, प्रेम, भाईचारे और सेवा की जो सीख दी, उसे आत्मसात करना ही उनकी जयंती की सच्ची सार्थकता होगी। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर ही हम समाज में समरसता और सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं।

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