Ranchi:धुर्वा डैम में सुरक्षा की कमी और आत्महत्या के बढ़ते मामले,1 वर्ष में 14 युवक व युवतियों ने छलांग लगाकर दे दी जान

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Ranchi:धुर्वा डैम में सुरक्षा की कमी और आत्महत्या के बढ़ते मामले,1 वर्ष में 14 युवक व युवतियों ने छलांग लगाकर दे दी जान

धुर्वा डैम में पिछले एक वर्ष में 14 युवकों और युवतियों द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटनाएं, रांची की सुरक्षा व्यवस्था और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। यह घटनाएँ सिर्फ एक आंकड़ा नहीं हैं, बल्कि समाज में गहरे मानसिक दबाव और संरचनात्मक कमियों की ओर इशारा करती हैं, जिनका समाधान न होना चिंता का विषय है।

धुर्वा डैम एक प्रमुख जलाशय है, जो रांची शहर के बाहर स्थित है। यह क्षेत्र पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र तो है, लेकिन अब यह आत्महत्या की घटनाओं के लिए भी बदनाम हो गया है। पिछले एक साल में 14 आत्महत्याओं के आंकड़े ने प्रशासन को मजबूर कर दिया है कि वह सुरक्षा इंतजामों की पुनः समीक्षा करें। सवाल यह है कि इतने बड़े जलाशय में आखिर सुरक्षा इंतजाम क्यों नहीं हैं? क्या यह नहीं समझा जा सकता कि इस प्रकार के स्थानों पर असुरक्षा के कारण लोग मानसिक तनाव से गुजरने के बाद आत्मघाती कदम उठा सकते हैं?

यह घटनाएं मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर भी गंभीर सवाल उठाती हैं। पारिवारिक समस्याएं, अकेलापन, आर्थिक दबाव और जीवन में समस्याओं से जूझ रहे लोग अक्सर ऐसे स्थानों को अपने दर्द से मुक्ति पाने का जरिया मान लेते हैं। शाहीन परवीन की आत्महत्या की घटना इसका उदाहरण है, जो पारिवारिक विवादों से परेशान थी और अपनी जिंदगी से निराश हो चुकी थी। यह घटना केवल एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं, बल्कि समाज के मानसिक स्वास्थ्य संकट का प्रतीक है, जो आज के समय में और भी बढ़ता जा रहा है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, जब लोग जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो वे अक्सर अपना सहारा खो देते हैं और आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में सुरक्षा की कमी और अव्यवस्थित मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं समस्याओं को और जटिल बना देती हैं। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और सामाजिक दबावों का सही इलाज नहीं होने से ऐसे मामलों में वृद्धि होती जा रही है।

इसका हल केवल सुरक्षा उपायों को बढ़ाने में नहीं है, बल्कि यह समझने में है कि क्यों लोग इन खतरनाक कदमों को उठाते हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह केवल डैम के आसपास की सुरक्षा की स्थिति को सुधारे, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में जागरूकता और सुधार के लिए कदम उठाए। इसके अलावा, आम जनता को भी इस विषय पर जागरूक करना आवश्यक है, ताकि वे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे व्यक्तियों की मदद कर सकें और उन्हें आत्महत्या जैसे कदम उठाने से रोक सकें।

अंत में, यह सवाल उठता है कि क्या हम अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए समाज में ऐसे मुद्दों को हल करने की दिशा में गंभीर प्रयास करेंगे? क्या हम ऐसे स्थानों पर न केवल सुरक्षा बल्कि मानसिक सहायता भी प्रदान करने का प्रयास करेंगे, ताकि ऐसे दर्दनाक हादसे कम से कम हो सकें? यह समय है, जब हमें सुरक्षा के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य के उपायों पर भी ध्यान देना होगा।

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