बसंत कुमार गुप्ता व्यूरो प्रमुख
गुमला:- 14नंवमबर 2023को जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष चैतु उरॉव के अध्यक्षता में परिसदन भवन गुमला में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जयंती मनाई। मुख्य रूप से झारखंड सरकार के वित्त मंत्री सह जिला प्रभारी मंत्री डॉ रामेश्वर उरॉव उपस्थित हुए।मौके में मंत्री रामेश्वर उरॉव ने अपने संबोधन में कहा कि आज 14 नवंबर है और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिवस है। उत्कृष्ट लेखक, इतिहासकार और आधुनिक भारत के निर्माता पंडित नेहरू को बच्चों से बहुत लगाव और प्रेम था, इसलिए उनकी जयंती को बाल दिवस के तौर पर मनाया जाता है। बच्चे नेहरू जी को प्यार से चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू का सबसे महत्वपूर्ण कार्य भारतीय राजनीति और जनजीवन में लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास करना था।
नेहरू के व्यक्तित्व में व्यवहारिकता और आदर्शवादिता दोनों गुणों का समन्वय था। जो कि एक दुर्लभ गुण है। नेहरू के विचारों में पश्चिमी सभ्यता व आधुनिकता का समावेश था। स्वाभाविक रूप से लोकतंत्र के समर्थक पंडित नेहरू संसद व कांग्रेस को साथ लेकर चलते रहे। अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संवैधानिक नियमों के अनुरूप दक्षतापूर्वक कार्य करने में उन्होंने कभी संकोच नहीं किया। राष्ट्रवाद के प्रति उनकी मानसिकता संकीर्ण नहीं थी। वे राष्ट्रीयता के गुणों को भली-भांति समझते थे। इसीलिए उन्होंने देश को एक संतुलित, संयमशील एवं आदर्श राष्ट्रवाद के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। मैं नहीं चाहता कि भारत ऐसा देश बने जहां लाखों लोग एक व्यक्ति की ‘हाँ’ में हाँ मिलाएं, -: चैतु उरॉव
जिला कांग्रेस अध्यक्ष चैतु उरॉव ने कहा कि नेहरू जी का राजनीतिज्ञ के रूप में सबसे महत्वपूर्ण कार्य भारतीय राजनीतिक प्रणाली में लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास करना और भारत में लोकतंत्र को खड़ा करना था। नेहरू संसदीय लोकतंत्र के सिद्धांत और व्यवहार के प्रबल समर्थक थे। उनकी दृष्टि में राजनीतिक लोकतंत्र अपने आप में साध्य नहीं बल्कि वह भारत के लाखों करोड़ों लोगों के दुख-दर्द और गरीबी दूर करने का साधन मात्र था। उन्होंने लोकतंत्र के साथ स्वतंत्रता और समानता के अटूट संबंध को स्वीकार किया। उनका मानना था कि समानता के बगैर स्वतंत्रता और लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं है।
सन् 1952 में पंडित नेहरू के नेतृत्व में देश के पहले आम चुनाव में स्वस्थ लोकतंत्र की जो नींव रखी गई थी वह आज तक जारी है। नेहरू के लिए लोकतंत्र का तात्पर्य एक ऐसा उत्तरदायित्वपूर्ण तथा जवाबदेह राजनीतिक प्रणाली थी, जिसमें विचार-विमर्श और प्रक्रिया के माध्यम से शासन हो। उनके जीवनीकार एस गोपाल के अनुसार, उनमें ‘लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अत्यंत दृढ़ बौद्धिक तथा नैतिक प्रतिबद्धता’ थी।
नेहरू ने 1950 की अंतरिम संसद में तथा 1952 से 1964 के बीच पहली, दूसरी तथा तीसरी लोकसभा में सदन के नेता के रूप में व्यक्तिगत उदाहरण प्रस्तुत करते हुए स्वस्थ परंपराओं और उदाहरणों की नींव रखी। नेहरू विपक्षी दलों को पूरा स्थान दिया करते थे एवं उनकी आलोचनाओं के प्रति बहुत संवेदनशील रहते थे। उन्होंने कहा था, ‘मैं नहीं चाहता कि भारत ऐसा देश बने जहां लाखों लोग एक व्यक्ति की ‘हाँ’ में हाँ मिलाएं, मैं एक मजबूत विपक्ष चाहता हूँ।’उन्होंने देश के बंटवारे तथा उसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक हिंसा को अथवा भारी संख्या में शरणार्थियों के आगमन को चुनावों को स्थगित करने का बहाना नहीं बनाया। उन्होंने मंत्रिमंडल को विमर्श और नीति निर्माण का माध्यम बनाया ।मौके पर मानिकचंद साहू खालिद साह, फिरोज आलम, निशांत दुबे, कलम आलम, राजनिल तिग्गा, तरूण गोप, आशीष गोप, मुख्तार आलम, अरुण गुप्ता,संजय दुबे, रोहित उरॉव, सुनिल उरांव, जय सिंह और काफी संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता उपस्थित थे।