
बरहड़वा | संवाददाता
बरहड़वा प्रखंड मुख्यालय से 17 किलोमीटर पूरब मिर्जापुर पंचायत के शुक्रवासिनी गांव स्थित माता शुक्रवासिनी मंदिर में बंगला बैशाख माह के अंतिम शुक्रवार को श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। इस पावन अवसर पर लगभग 30 हजार श्रद्धालुओं ने मां शुक्रवासिनी का दुग्ध व गंगाजल से स्नान कराकर विधिवत पूजा-अर्चना की।
श्रद्धालु झारखंड के बरहड़वा, राजमहल, उधवा, मंगलहाट, बरहेट, तीनपहाड़, पाकुड़ सहित पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद व मालदा जिलों के विभिन्न क्षेत्रों से यहां पहुंचे थे। सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, मां को केवल दूध, गंगाजल और बताशा का भोग चढ़ाया जाता है।
धार्मिक आस्था से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
शुक्रवासिनी मंदिर का इतिहास काफ़ी रोचक है। मंदिर के अध्यक्ष डुब्बा मंडल ने बताया कि करीब 200 वर्षों से मां की पूजा यहां एक वृक्ष की जड़ में की जाती है। मान्यता है कि उस स्थान पर अर्पित किया गया दूध और गंगाजल रहस्यमय रूप से अदृश्य हो जाता है। ग्रामीणों का विश्वास है कि यह तरल पदार्थ झील के माध्यम से गंगा नदी से जुड़ जाता है, जिससे यह स्थान मां गंगा से भी आध्यात्मिक रूप से जुड़ा माना जाता है।
कभी पेड़ के नीचे होती थी पूजा, अब भव्य मंदिर
स्थानीय जनश्रुति के अनुसार, पूर्व में जब किसी परिवार को शादी-विवाह के आयोजन में खाद्य सामग्री की कमी होती थी, तो वे मां से प्रार्थना करते थे और अगली सुबह वृक्ष के नीचे बर्तनों में चावल, दाल, आलू जैसी आवश्यक सामग्री स्वतः मिलती थी।
वर्ष 1971 में एक स्थानीय व्यक्ति को माता ने स्वप्न में दर्शन दिए, जिसके बाद उस स्थान पर एक झोपड़ी बनाई गई और पूजा की नियमित शुरुआत हुई। 1978 में एक छोटा पक्का मंदिर बना और समय के साथ श्रद्धालुओं की संख्या, मां के चमत्कारों की ख्याति और मंदिर की संरचना में विकास होता गया। वर्तमान में यहां एक भव्य पक्का मंदिर मौजूद है।
सौंदर्यीकरण व विकास कार्यों का हो रहा विस्तार
मंदिर के चारों ओर हरियाली, आम के बगान, झील व तालाब इसे प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर बनाते हैं। मंदिर विकास समिति के प्रयासों से परिसर में 2-3 तालाबों की खुदाई कर मछली पालन की शुरुआत की गई है। आम के बगान और मत्स्य व्यवसाय से होने वाली आय को मंदिर के रख-रखाव और विकास में लगाया जाता है।
पर्यटन स्थल के रूप में मान्यता की उम्मीद
डुब्बा मंडल और समिति के अन्य सदस्यों को उम्मीद है कि आने वाले समय में सरकार की ओर से शुक्रवासिनी मंदिर को पर्यटन स्थल का दर्जा मिलेगा। इससे श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी और मंदिर की ख्याति राज्य और देशभर में फैलेगी।
यह मंदिर न सिर्फ़ आस्था का केंद्र है, बल्कि लोक आस्था, परंपरा और प्रकृति से जुड़ा हुआ एक जीवंत स्थल भी है, जहां हर शुक्रवार को और विशेषतः बैशाख के अंतिम शुक्रवार को आस्था का महासंगम देखने को मिलता है।