L2: Empuraan – मोहनलाल को रजनीकांत बनाने के फेर में फंसे पृथ्वीराज, ‘बेबीलोन का राजा’ नहीं बन पाया लुसिफर

L2: Empuraan – मोहनलाल को रजनीकांत बनाने के फेर में फंसे पृथ्वीराज, ‘बेबीलोन का राजा’ नहीं बन पाया लुसिफर

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L2: Empuraan – मोहनलाल को रजनीकांत बनाने के फेर में फंसे पृथ्वीराज, ‘बेबीलोन का राजा’ नहीं बन पाया लुसिफर

2019: मलयालम सिनेमा का ट्रांजिशन पीरियड। उस साल दर्शकों को पहली बार एक भव्य, बड़े पैमाने की एक्शन-थ्रिलर देखने को मिली, जो किसी भी हिंदी ब्लॉकबस्टर फिल्म से कम नहीं थी। यह थी ‘लुसिफर’ – एक ऐसी फिल्म जिसने मलयालम सिनेमा को पैन-इंडिया लेवल पर एक नई पहचान दी।

अब, छह साल बाद, इसके सीक्वल ‘L2: Empuraan’ के साथ पृथ्वीराज सुकुमारन ने एक बार फिर इस फ्रेंचाइजी को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। लेकिन सवाल उठता है – क्या यह फिल्म अपनी पूर्ववर्ती फिल्म की सफलता को दोहरा पाई? क्या स्टीफन नेदुमपल्ली यानी मोहनलाल इस बार सच में ‘Empuraan’ (बेबीलोन का राजा) बनने में सफल रहे?

‘लुसिफर’ से ‘L2: Empuraan’ तक का सफर

फिल्म ‘लुसिफर’ का टाइटल बाइबिल के संदर्भ से लिया गया था, जिसका अर्थ है बेबीलोन का राजा या वह दानव जिसने ईश्वर के खिलाफ बगावत की थी। स्टीफन नेदुमपल्ली (मोहनलाल) भी ऐसा ही एक किरदार था – एक ऐसा नेता, जो बाहरी रूप से तो एक विधायक था, लेकिन असल में अंडरवर्ल्ड और राजनीति के सबसे ताकतवर खेल का खिलाड़ी था।

L2: Empuraan – मोहनलाल को रजनीकांत बनाने के फेर में फंसे पृथ्वीराज, ‘बेबीलोन का राजा’ नहीं बन पाया लुसिफर

अब, ‘L2: Empuraan’ में कहानी और भी आगे बढ़ती है। स्टीफन नेदुमपल्ली सिर्फ केरल या भारत तक सीमित नहीं है, वह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर का शक्ति केंद्र बन चुका है। सवाल यह है – क्या वह सच में ‘Empuraan’ बन पाया, या फिर सत्ता के इस खेल में वह उलझ कर रह गया?

पृथ्वीराज सुकुमारन की महत्त्वाकांक्षा, लेकिन…

फिल्म के निर्देशक पृथ्वीराज सुकुमारन ने इस बार फिल्म को बड़े पैमाने पर इंटरनेशनल लेवल पर ले जाने का प्रयास किया है।

  • पूरी फिल्म को हॉलीवुड स्टाइल एक्शन-थ्रिलर के रूप में डिजाइन किया गया है।
  • स्टीफन को अब सिर्फ राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि एक ग्लोबल मास्टरमाइंड के रूप में पेश किया गया है।
  • भव्य सेट, शानदार सिनेमेटोग्राफी, जबरदस्त बैकग्राउंड स्कोर – फिल्म टेक्निकल लेवल पर शानदार है।

लेकिन… कहानी कहीं खो जाती है।

क्या मोहनलाल ‘रजनीकांत’ बनने में सफल रहे?

यह फिल्म मोहनलाल को एक सुपरस्टार स्टाइल में दिखाने की कोशिश करती है, कुछ-कुछ रजनीकांत के अंदाज में।

  • स्लो-मोशन एंट्री
  • धांसू डायलॉग्स
  • बड़े स्तर की लड़ाइयाँ

लेकिन दिक्कत यह है कि मोहनलाल की नैचुरल करिश्माई अपील इस फिल्म में कम दिखती है।

  • ‘लुसिफर’ में उनके किरदार की रहस्यमय और इंटेंस पर्सनालिटी थी, जो इस बार ज्यादा ओवर-एक्सपोज हो गई है।
  • उनकी एंट्री और एक्शन सीन्स बेहतरीन हैं, लेकिन इमोशनल गहराई कहीं न कहीं गायब हो गई है।

फिल्म की कमजोर कड़ियाँ

  1. जरूरत से ज्यादा स्टाइल, कम कहानी – फिल्म स्टाइलिश तो है, लेकिन कहानी की पकड़ कमजोर है।
  2. इंटरनेशनल पॉलिटिक्स का ओवरडोज – फिल्म एक भारतीय राजनीतिक थ्रिलर से निकलकर ग्लोबल पावर गेम में बदल जाती है, जिससे ऑडियंस का कनेक्शन कमजोर हो जाता है।
  3. स्लो पेस और लंबाई – फिल्म 3 घंटे से ज्यादा लंबी है, जिससे कई जगहों पर यह थका देने वाली लगती है।
  4. इमोशनल कनेक्ट की कमी – पहली फिल्म में एक मजबूत इमोशनल बैकबोन था, जो इस बार गायब है।

क्या यह फिल्म देखनी चाहिए?

अगर आप मोहनलाल फैन हैं और स्टाइलिश एक्शन फिल्में पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए है।

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