संवाददाता – शशिकांत, बोकारो
बोकारो : चास नगर आज पूरी तरह से पारंपरिक लोक गीतों, नृत्यों और हजारों महिलाओं के उल्लास से सराबोर हो गया। अवसर था डहरे करम बेड़हा का, जिसका आयोजन वृहत झारखंड कला सांस्कृतिक मंच के तत्वावधान में किया गया। परंपरा के इस भव्य आयोजन ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि झारखंड की संस्कृति और लोक परंपराएं आज भी समाज को मजबूती से जोड़ने का काम कर रही हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुबह आईटीआई मोड़ से हुआ, जहां से शोभायात्रा ढोल-नगाड़ों और करमा गीतों की गूंज के बीच बिरसा चौक तक निकाली गई। पारंपरिक वेशभूषा में सजी महिलाएं, माताएं और बहनें करमा गीत गाते हुए और थिरकते हुए आगे बढ़ती रहीं। इस दौरान हर मोड़ पर सांस्कृतिक रंग-बिरंगे दृश्य देखने को मिले। ग्रामीण इलाकों से आई महिलाओं ने अपने गीतों और नृत्यों के माध्यम से झारखंड की संस्कृति को जीवंत कर दिया।
भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक
मौके पर उपस्थित वक्ताओं ने कहा कि करम पर्व झारखंड की परंपरा और भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। यह पर्व सामाजिक समरसता और पारिवारिक एकजुटता को बढ़ावा देता है। डहरे करम बेड़हा उसी परंपरा का हिस्सा है, जो करम पूजा से पूर्व धूमधाम से निकाला जाता है। वक्ताओं ने कहा कि आधुनिकता के दौर में भी इस तरह के आयोजन युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करते हैं।
महिलाओं की रही खास भागीदारी
इस भव्य आयोजन की सबसे खास बात यह रही कि इसमें महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा दिखी। हजारों की संख्या में माताएं और बहनें विभिन्न गांवों और देहातों से पहुंचीं। उनकी पारंपरिक साड़ियों, सिर पर रखे डलिया और करमा गीतों की गूंज ने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक बना दिया। महिलाएं एक साथ कतारबद्ध होकर गीत गातीं और नृत्य करतीं तो देखने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते।
लोक संस्कृति का अद्भुत संगम
डहरे करम बेड़हा केवल एक धार्मिक जुलूस नहीं बल्कि लोक संस्कृति का अद्भुत संगम भी है। यहां झारखंड की लोककला, लोकगीत और पारंपरिक नृत्य का अनूठा मिश्रण देखने को मिला। छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आयोजन स्थल पर जगह-जगह सांस्कृतिक मंचन भी किए गए, जिनमें करमा से जुड़ी लोककथाओं और गीतों का प्रदर्शन हुआ।
आयोजकों का उद्देश्य
वृहत झारखंड कला सांस्कृतिक मंच के पदाधिकारियों ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य परंपरा को जीवित रखना और नई पीढ़ी को सांस्कृतिक विरासत से जोड़ना है। उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ रही है, ऐसे में उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ना बेहद जरूरी है। यही कारण है कि हर साल डहरे करम बेड़हा का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है।
प्रशासन और समाज की सक्रिय भूमिका
कार्यक्रम को सफल बनाने में स्थानीय प्रशासन और समाजसेवियों की भी अहम भूमिका रही। शोभायात्रा के दौरान सुरक्षा और यातायात व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। नगर के विभिन्न सामाजिक संगठनों ने भी इसमें सहयोग किया।
माहौल में भक्ति और उल्लास
दिनभर चली इस शोभायात्रा ने पूरे चास नगर को सांस्कृतिक रंग में रंग दिया। चारों ओर ढोल-नगाड़ों की धुन, गीतों की गूंज और महिलाओं की झूमती टोली ने ऐसा वातावरण बना दिया, मानो पूरा नगर करमा महोत्सव में डूब गया हो। शाम तक बिरसा चौक पहुंचने के बाद पूजा-अर्चना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।