
रांची: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए वक्फ संशोधन कानून (Waqf Amendment Act) को लेकर झारखंड की राजनीति में उबाल आ गया है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेस नेता डॉ. इरफान अंसारी ने इस कानून के विरोध में मोर्चा खोलते हुए साफ शब्दों में कहा है कि यह बिल झारखंड में लागू नहीं किया जाएगा। उनके इस बयान के बाद राज्य में सियासी तूफान खड़ा हो गया है।
डॉ. इरफान अंसारी ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, “भाजपा की सरकार तुगलकी फरमान जारी कर रही है। वक्फ बोर्ड की जमीन को अदाणी-अंबानी जैसे पूंजीपतियों को सौंपने की साजिश रची जा रही है, लेकिन हम इसे सफल नहीं होने देंगे। झारखंड की धरती पर यह कानून लागू नहीं होने दिया जाएगा।” उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक समुदाय नहीं, बल्कि गरीबों और मजलूमों की जमीन की लड़ाई है, जिसे कांग्रेस पार्टी मजबूती से लड़ रही है।
स्वास्थ्य मंत्री ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी इस अन्यायपूर्ण कानून के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं। उन्होंने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि यह कानून लाकर वह अल्पसंख्यकों की जमीनों और संपत्तियों को जबरन हड़पने की कोशिश कर रही है। “हम अदाणी-अंबानी को वक्फ की जमीन बेचने नहीं देंगे,” उन्होंने दोहराया।
इस पूरे विवाद के केंद्र में वक्फ संशोधन कानून है, जिसे केंद्र सरकार ने हाल ही में पारित किया है। इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड को कुछ नई शक्तियाँ दी गई हैं, लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि इसके माध्यम से केंद्र सरकार अल्पसंख्यकों की संपत्तियों पर नियंत्रण स्थापित करना चाहती है।
विपक्ष के इस विरोध के बीच भाजपा नेताओं ने डॉ. अंसारी के बयान को ‘राजनीतिक स्टंट’ बताया है। भाजपा प्रवक्ताओं का कहना है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “वक्फ एक्ट का मकसद सिर्फ पारदर्शिता और व्यवस्था सुनिश्चित करना है, इसमें किसी की जमीन जब्त करने का इरादा नहीं है। इरफान अंसारी का बयान सिर्फ ध्रुवीकरण की राजनीति है।”
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर झारखंड की राजनीति में हलचल मच गई है। कांग्रेस समर्थक संगठन और मुस्लिम समुदाय के कुछ समूहों ने डॉ. अंसारी के बयान का समर्थन करते हुए कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने की भी तैयारी शुरू कर दी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा टकराव देखने को मिलेगा। राज्य में आगामी चुनावों को देखते हुए यह मुद्दा और भी अहम हो गया है, क्योंकि यह सीधे-सीधे अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा हुआ है, जो झारखंड में एक बड़ा वोट बैंक है।
फिलहाल, राज्य सरकार की ओर से इस कानून को लेकर कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है, लेकिन डॉ. इरफान अंसारी के बयान ने राजनीतिक गलियारों में बहस को तेज कर दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और क्या यह मामला विधानसभा तक भी पहुंचता है या नहीं।
झारखंड में वक्फ कानून को लेकर मचा यह सियासी घमासान आने वाले वक्त में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच टकराव का बड़ा कारण बन सकता है।