झारखंड में जातीय सर्वे से किसे फायदा, किसे नुकसान?

झारखंड में जातीय सर्वे से किसे फायदा, किसे नुकसान?

Views: 53
0 0
Read Time:5 Minute, 11 Second
झारखंड में जातीय सर्वे से किसे फायदा, किसे नुकसान?
  • कांग्रेस जल्दबाजी में, लेकिन हेमंत सोरेन की रफ्तार धीमी

रांची। बिहार और तेलंगाना के बाद झारखंड में भी जातीय सर्वे की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव के सवाल के जवाब में राज्य के राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री दीपक बिरुआ ने विधानसभा में कहा कि सरकार जातीय सर्वे कराने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया कि अगले वित्तीय वर्ष 2025-26 में जातीय सर्वे शुरू करने की योजना बनाई गई है।

जातीय सर्वे को लेकर राजनीतिक खींचतान

जातीय सर्वे पर झारखंड में सत्तारूढ़ दलों के बीच ही अलग-अलग मतभेद नजर आ रहे हैं। कांग्रेस जहां इस प्रक्रिया को जल्द पूरा कराने के पक्ष में है, वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की ओर से इस पर धीमी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कांग्रेस का मानना है कि जातीय सर्वे से सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने में मदद मिलेगी, जबकि झामुमो इस पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपना रहा।

जातीय सर्वे से किन्हें होगा फायदा?

  1. अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी): झारखंड में ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग लंबे समय से चल रही है। जातीय सर्वे से इस वर्ग की सटीक जनसंख्या का पता चलेगा और उन्हें ज्यादा आरक्षण मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।
  2. दलित और आदिवासी वर्ग: सर्वे से उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का बेहतर आंकलन किया जा सकेगा, जिससे सरकारी योजनाओं को उनके अनुरूप लागू करने में मदद मिलेगी।
  3. राजनीतिक दल: जातीय सर्वेक्षण के नतीजों के आधार पर राजनीतिक दल अपनी रणनीति को नए सिरे से तय कर सकते हैं। इससे विशेषकर कांग्रेस और झामुमो को फायदा हो सकता है, जो आदिवासी और पिछड़ा वर्ग की राजनीति करते रहे हैं।

जातीय सर्वे से किसे नुकसान हो सकता है?

  1. सवर्ण समाज: यदि ओबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण बढ़ाया जाता है, तो सवर्ण समुदाय को मिलने वाले अवसरों में कटौती हो सकती है।
  2. बीजेपी: जातीय सर्वे के आंकड़े आने के बाद पिछड़े और दलित वर्गों में राजनीतिक ध्रुवीकरण हो सकता है, जिससे बीजेपी को नुकसान हो सकता है।
  3. आर्थिक आधार पर आरक्षण समर्थक: जातीय सर्वेक्षण के बाद आरक्षण व्यवस्था में जातिगत आधार को और अधिक मजबूती मिलने की संभावना है, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों की मांग कमजोर हो सकती है।

बिहार और तेलंगाना से क्या सीख सकता है झारखंड?

बिहार ने जातीय सर्वेक्षण के आधार पर ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को अधिक आरक्षण देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वहीं, तेलंगाना में भी सर्वेक्षण के आंकड़ों के बाद पिछड़े वर्गों को सरकारी नीतियों में अधिक भागीदारी देने की योजना बनाई गई। झारखंड भी इसी दिशा में आगे बढ़ सकता है।

क्या बदलेगा जातीय सर्वे के बाद?

  1. आरक्षण नीति में बदलाव: सर्वे के आधार पर झारखंड में ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ सकती है।
  2. राजनीतिक समीकरण: जातीय आंकड़ों के आधार पर राजनीतिक दलों की रणनीति बदलेगी और चुनावी मुद्दे नए सिरे से तय किए जाएंगे।
  3. सरकारी योजनाओं में सुधार: सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों के विश्लेषण के बाद कल्याणकारी योजनाओं को नए तरीके से लागू किया जा सकता है।

जातीय सर्वेक्षण झारखंड की राजनीति और सामाजिक ढांचे में बड़े बदलाव ला सकता है। हालांकि, इसे लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी बड़ी भूमिका होगी। कांग्रेस इसे जल्द पूरा करने के पक्ष में है, लेकिन झामुमो की धीमी गति से यह सवाल उठने लगा है कि क्या सरकार इसे वाकई लागू करेगी या सिर्फ चुनावी रणनीति के तहत इसकी चर्चा हो रही है?

SORSH:BHASKAR

Loading

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

More From Author

दिल्ली में प्रचंड गर्मी की दस्तक, यूपी-राजस्थान में भी बढ़ेगा तापमान; मानसून की होगी देरी

दिल्ली में प्रचंड गर्मी की दस्तक, यूपी-राजस्थान में भी बढ़ेगा तापमान; मानसून की होगी देरी

डीवीसी ने लातेहार बैडमिंटन इंडोर स्टेडियम के सौंदर्यकरण हेतु सीएसआर मद से दिया 55.69 लाख रुपये का चेक

डीवीसी ने लातेहार बैडमिंटन इंडोर स्टेडियम के सौंदर्यकरण हेतु सीएसआर मद से दिया 55.69 लाख रुपये का चेक

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Web Stories

ताजा खबरें

local news

add

Post