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झारखंड विधानसभा मार्च: विस्थापन नीति और भूमि अधिकारों को लेकर संघर्ष तेज

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झारखंड विधानसभा मार्च: विस्थापन नीति और भूमि अधिकारों को लेकर संघर्ष तेज

रांची। झारखंड के ज्वलंत मुद्दों को लेकर झारखंड राज्य विस्थापित संघर्ष मोर्चा के बैनर तले, पूर्व सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता के नेतृत्व में आज, 24 मार्च को झारखंड विधानसभा का घेराव किया गया। मार्च की शुरुआत रांची स्थित बिरसा चौक से हुई, जहां भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर आंदोलनकारियों ने अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया।

भुवनेश्वर मेहता ने इस आंदोलन को झारखंड के विस्थापितों और प्रभावित किसानों के लिए निर्णायक बताया। उन्होंने कहा कि विस्थापन एवं नियोजन नीति को सख्ती से लागू करने, विस्थापन आयोग के गठन, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को पूर्ण रूप से लागू करने और उपजाऊ जमीन के अधिग्रहण को रोकने की जरूरत है।

मुख्य मांगें

  1. विस्थापन आयोग का गठन – विस्थापित परिवारों को न्याय दिलाने के लिए आयोग का गठन किया जाए।
  2. भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 लागू हो – किसानों की उपजाऊ भूमि का जबरन अधिग्रहण रोका जाए।
  3. कोल ब्लॉक आवंटन रद्द किया जाए – हजारीबाग जिले में किए गए कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द किया जाए।
  4. गैर मजरूआ जमीन की भूमि बैंक को रद्द करने – गैर मजरूआ भूमि बैंक को खत्म कर वास्तविक जमीन मालिकों को उनके अधिकार दिए जाएं।
  5. किसानों की जमीन वापस हो – जरूरत से ज्यादा उद्योगों द्वारा ली गई जमीन को किसानों को वापस किया जाए।
  6. आंदोलनकारियों को मुआवजा मिले – जेल गए आंदोलनकारियों को 50-50 हजार रुपये की सम्मान राशि मिले।
  7. दखल-कब्जा की जमीन का रसीद चालू हो – बंदोबस्त जमीन का रसीद जारी किया जाए और कानूनी मान्यता दी जाए।

प्रदर्शन में उमड़ा जनसैलाब

इस विधानसभा मार्च में झारखंड के विभिन्न जिलों से आए हजारों विस्थापित, किसान, मजदूर और आदिवासी संगठनों के लोग शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने सरकार से मांग की कि उनके अधिकारों की रक्षा की जाए और जबरन भूमि अधिग्रहण की नीति को बदला जाए।

आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगों पर जल्द विचार नहीं किया गया तो वे और उग्र आंदोलन करेंगे। विधानसभा घेराव के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हल्की झड़प भी हुई, लेकिन प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा।

सरकार का रुख

सरकार की ओर से इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन यह मुद्दा झारखंड की राजनीति में बड़ा मोड़ ले सकता है। राज्य सरकार को जल्द ही विस्थापितों और प्रभावित किसानों की मांगों पर विचार करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

झारखंड में विस्थापन और भूमि अधिग्रहण से जुड़ा यह आंदोलन आने वाले समय में और तेज होने की संभावना है।

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