
कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ मुद्दा
भारतीय अभिनेत्री और फिल्म निर्माता कंगना रनौत द्वारा निर्देशित फिल्म इमरजेंसी भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को सिल्वर स्क्रीन पर प्रस्तुत करती है। फिल्म की कहानी 1975 से 1977 के आपातकाल की पृष्ठभूमि पर आधारित है। यह वह दौर था जब भारत में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजनीतिक अस्थिरता के कारण देश में आपातकाल घोषित कर दिया था।
कंगना ने इस फिल्म में इंदिरा गांधी की भूमिका निभाई है, और फिल्म को राजनीतिक घटनाक्रमों, व्यक्तिगत संघर्षों और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के दृष्टिकोण से बुना गया है।
फिल्म ने न केवल भारतीय दर्शकों का ध्यान खींचा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसकी चर्चा हुई। खासतौर पर, जब ब्रिटेन में इसकी स्क्रीनिंग खालिस्तान समर्थकों के विरोध के कारण बाधित हुई, तब इस फिल्म ने एक नया विमर्श छेड़ा।
फिल्म का सिनेमाई पक्ष
‘इमरजेंसी’ कंगना रनौत की अदाकारी और निर्देशन क्षमता को एक नई ऊंचाई पर ले जाती है। इंदिरा गांधी के चरित्र की गहराई और उनके राजनीतिक फैसलों को परदे पर जीवंत करने में कंगना ने प्रभावशाली अभिनय किया है। फिल्म में संवाद, निर्देशन, और 1970 के दशक की प्रामाणिकता को सही तरीके से दर्शाने की कोशिश की गई है।
- कहानी और पटकथा
फिल्म भारतीय राजनीति के सबसे विवादास्पद अध्याय पर आधारित है। इमरजेंसी के दौरान सेंसरशिप, गिरफ्तारियों, और विरोध प्रदर्शन का प्रभावी चित्रण किया गया है। यह फिल्म सत्ता, स्वतंत्रता और नैतिकता के बीच की जटिलता को सामने लाती है। - कलाकारों का प्रदर्शन
कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी के विचारों, भाषणों और कार्यशैली को गहराई से पकड़ा है। अनुपम खेर, श्रेयस तलपड़े और अन्य सह-अभिनेताओं ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। - संगीत और तकनीकी पक्ष
फिल्म का संगीत 1970 के दशक की भारतीय पृष्ठभूमि से मेल खाता है। सिनेमाटोग्राफी और सेट डिज़ाइन ने उस दौर की सच्चाई को बखूबी उभारा है।
ब्रिटिश विवाद और खालिस्तानी मुद्दा
ब्रिटेन में ‘इमरजेंसी’ की स्क्रीनिंग के दौरान खालिस्तान समर्थकों द्वारा की गई बाधा सिर्फ एक सिनेमा की स्क्रीनिंग पर हमला नहीं था, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दर्शकों के अधिकारों के खिलाफ भी एक गंभीर कदम था।
ब्रिटिश संसद में सांसद बॉब ब्लैकमैन ने इस मुद्दे को उठाते हुए इसे ब्रिटेन के कानून और मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा। उन्होंने इस घटना को वहां के बहुसांस्कृतिक समाज के लिए खतरा बताया। उनका यह बयान लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अहमियत को दोहराता है।
खालिस्तान समर्थकों का यह विरोध उस राजनीतिक अतीत को लेकर है, जिसे वे अपने दृष्टिकोण से देखते हैं। लेकिन एक कला माध्यम पर हमला करना न केवल अस्वीकार्य है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है।
फिल्म की समीक्षात्मक दृष्टि से मूल्यांकन
- मजबूत पक्ष
- कहानी का प्रभावशील चित्रण: यह फिल्म न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र और स्वतंत्रता के महत्व को समझाने में सफल रहती है।
- अभिनय: कंगना रनौत और अन्य कलाकारों का प्रदर्शन दमदार और प्रभावशाली है।
- निर्देशन: कंगना ने निर्देशक के रूप में अपनी क्षमता को सिद्ध किया है।
- कमजोर पक्ष
- कुछ दर्शकों को फिल्म का राजनीतिक दृष्टिकोण एकपक्षीय लग सकता है।
- फिल्म का धीमा कथानक और संवाद कुछ स्थानों पर कमजोर प्रतीत होते हैं।
ब्रिटेन के संदर्भ में फिल्म का प्रभाव
ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां विभिन्न संस्कृतियों और मतों का सह-अस्तित्व है, वहां ऐसी घटनाओं का होना दुर्भाग्यपूर्ण है। ‘इमरजेंसी’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि यह इतिहास और सच्चाई का दस्तावेज है, जिसे प्रतिबंधित करना या रोकना किसी भी देश के लिए हानिकारक है। ब्रिटिश संसद में इस मुद्दे का उठना यह साबित करता है कि सिनेमा न केवल एक कला है बल्कि वैश्विक मुद्दों को समझने का माध्यम भी है।
‘इमरजेंसी’ एक मजबूत, विचारोत्तेजक और ऐतिहासिक फिल्म है, जो न केवल दर्शकों को भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण दौर के बारे में जागरूक करती है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रासंगिकता को भी रेखांकित करती है। ब्रिटेन में हुई घटना ने इस फिल्म को एक नए संदर्भ में चर्चित बना दिया है।
यह फिल्म न केवल भारतीय सिनेमा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वैश्विक समाज को स्वतंत्रता, अधिकार और अभिव्यक्ति के मूल्य समझाने का कार्य भी करती है। इस विवाद ने यह सुनिश्चित किया कि कला और अभिव्यक्ति पर किसी भी प्रकार की बाधा को सहन नहीं किया जाना चाहिए।