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राँची :कई पूर्व मुख्यमंत्रियों की साख दांव पर,रिजल्ट आज

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विधानसभा चुनाव के नतीजे शनिवार को घोषित होंगे. सुबह 10 बजे से रुझान आना शुरू हो जाएंगे, और शुक्रवार की रात प्रत्याशियों और उनके समर्थकों के लिए बेचैनी और उम्मीदों से भरी होगी.81 सीटों पर हुए इस चुनाव में कई उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला जनता ने कर दिया है. जहां कुछ के लिए यह रात जीत की खुशी लेकर आएगी, वहीं कईयों को हार का सामना करना पड़ेगा.

चुनाव में कांटे की टक्कर ने प्रत्याशियोंराँची :कई पूर्व मुख्यमंत्रियों की साख दांव पर,रिजल्ट आज और उनके समर्थकों की धड़कनें बढ़ा दी हैं। कई सीटों पर बेहद करीबी मुकाबले की संभावना ने सभी को बेचैन कर दिया है। प्रत्याशी जहां पूजा-पाठ और हवन में व्यस्त हैं, वहीं कार्यकर्ता रणनीतियों की समीक्षा में जुटे हुए हैं.24 साल का युवा झारखंड अब तक 7 मुख्यमंत्री को कुर्सी पर बैठते और उतरते देख चुका है. इस बार के विधानसभा चुनाव में इन सभी की साख दांव पर लगी हुई है. इनमें वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन और बाबूलाल मरांडी खुद विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि शिबू सोरेन से लेकर अर्जुन मुंडा, रघुवर दास और मधु कोड़ा जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा भी सवालों के घेरे में है. जाहिर है इस बार का विधानसभा चुनाव झारखंड के इन दिग्गज नेताओं के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.इस बार के चुनाव ने राज्य के इन दिग्गज नेताओं को बड़े राजनीतिक इम्तिहान में डाल दिया है.यह चुनाव पूर्व मुख्यमंत्रियों के केवल जीत-हार तक सीमित नहीं है. यह उनकी राजनीतिक विरासत, प्रभाव और भविष्य की राजनीति को नई दिशा देने वाला साबित होगा. शनिवार को आने वाले नतीजे झारखंड की राजनीति में नए समीकरण
बना सकते हैं.

चंपई सोरेन :झामुमो से भाजपा तक का सफर

चंपई सोरेन, जो फरवरी 2024 में झारखंड के सातवें मुख्यमंत्री बने थे, इस बार अपनी परंपरागत सीट सरायकेला से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 में उन्होंने झामुमो प्रत्याशी के रूप में गणेश महली को हराया था. इस बार, दोनों नेता आमने-सामने हैं, लेकिन पार्टी का झंडा बदल चुका है. चंपई के बेटे बाबूलाल सोरेन भी घाटशिला से भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं. यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है.

बाबूलाल मरांडी: झारखंड की सत्ता में वापसी का दांव

झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और वर्तमान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी धनवार सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 में उन्होंने जेविएम उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी. इस बार उनके सामने झामुमो और माले के दो मजबूत उम्मीदवार खड़े हैं. मरांडी के लिए यह चुनाव अपनी सीट बचाने के साथ-साथ झारखंड की सत्ता में पार्टी की वापसी कराने का बड़ा मौका है.

शिबू सोरेन: परिवार की प्रतिष्ठा का सवाल

झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन, हालांकि सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनका नाम आज भी पार्टी की ताकत बना हुआ है. इस बार उनके बेटे हेमंत सोरेन (बरहेट), बहू कल्पना सोरेन (गांडेय), और छोटे बेटे बसंत सोरेन (दुमका) मैदान में हैं. वहीं, उनकी बड़ी बहू सीता सोरेन, झामुमो छोड़कर भाजपा के टिकट पर जामताड़ा से चुनाव लड़ रही हैं. शिबू सोरेन के परिवार के लिए यह चुनाव एक बड़ी चुनौती है.खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा का विषय है.

अर्जुन मुंडा: पत्नी मीरा मुंडा के सहारे सियासी वापसी की उम्मीद

पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा इस बार खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. उनकी पत्नी मीरा मुंडा, पोटका सीट से बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं. यहां उनका मुकाबला झामुमो के संजीव सरदार से है. 2019 में संजीव सरदार ने बीजेपी प्रत्याशी को बड़े अंतर से हराया था। यह चुनाव अर्जुन मुंडा की सियासी ताकत की परीक्षा भी है.

रघुवर दास: बहू पूर्णिमा साहू के सहारे सियासी विरासत की लड़ाई

झारखंड के पहले पूर्णकालिक मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू दास जमशेदपुर पूर्वी सीट से भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं. 2019 में रघुवर दास को उनके कैबिनेट सहयोगी सरयू राय ने हराया था. इस बार पूर्णिमा के सामने कांग्रेस के अजय कुमार जैसे दिग्गज नेता हैं. यह मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है.

मधु कोड़ा: पत्नी गीता कोड़ा पर दांव

झारखंड के पांचवें मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, जगन्नाथपुर सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. यहां उनका सामना झामुमो के मौजूदा विधायक सोनाराम सिंकू से है. लोकसभा चुनाव में हार के बाद गीता कोड़ा और मधु कोड़ा के लिए यह चुनाव “करो या मरो” जैसा है.

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