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अखंड सुहाग को बनाए रखने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। महिलाए

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अखंड सुहाग को बनाए रखने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। महिलाए

बब्लू खान/आकाश कुमार

हम सभी जानते हैं कि भारत त्योहारों और उत्सवों का देश है। महत्वपूर्ण त्योहारों के अलावा, हम छोटे-छोटे क्षेत्रीय त्योहार भी मनाते हैं जो हमें खुशियाँ देता हैं। यहां हमारे भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़े विभिन्न व्रत और त्योहार होते हैं। इन्हीं व्रतों में से एक है तीज व्रत। तीज को भारत में किये जाने वाले सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है। महिलाएं इस व्रत को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ करती हैं।

साथ ही इसका कुछ धार्मिक महत्व भी
हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस साल दो दिन तिथि पड़ने के कारण लोगों के काफी असमंज की स्थिति बनी हुई है कि आखिर हरतालिका तीज का व्रत 5 को होगा कि 6 सितंबर को। हिंदू धर्म में हरतालिका तीज का विशेष महत्व है। अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन मां पार्वती और शिव जी की विधिवत पूजा करने का विधान है। इसके साथ ही कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए व्रत रखती हैं।


सौभाग्यवती महिलाएं अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं। अविवाहित युवतियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस दिन उपवास करती हैं। हरतालिका तीज को मनाने का एक कारण माता पार्वती और भगवान शिव हैं। मान्यता है कि माता पार्वती ने ही सबसे पहले हरतालिका तीज का व्रत करते भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। माता पार्वती का अनुसरण करते हुए महिलाएं शिवजी और माता पार्वती जैसा दांपत्य जीवन पाने की कामना करती हैं।

माँ पार्वती के इस तपस्वनी रूप को नवरात्रि के दौरान माता शैलपुत्री के नाम से पूजा जाता है।

एक कथा के अनुसार माँ पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर ही काटे और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा ही ग्रहण कर जीवन व्यतीत किया।

माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुःखी थे।इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वतीजी के विवाह का प्रस्ताव लेकर माँ पार्वती के पिता के पास पहुँचे जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब बेटी पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वे बहुत दु:खी हो गईं और जोर-जोर से विलाप करने लगीं।
फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वे यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं, जबकि उनके पिता उनका विवाह श्री विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गईं और वहाँ एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं। माँ पार्वती के इस तपस्वनी रूप को नवरात्रि के दौरान माता शैलपुत्री के नाम से पूजा जाता है।


भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र मे माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वे अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करतीं हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बनाए रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है।

हर तिलक की शुभ मुहूर्त है नरेंद्र पाठक


पंडित नरेंद्र पाठक बताते हैं कि द्रिक पंचांग के अनुसार, हरतालिका तीज भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि 5 सितंबर को दोपहर 12:21 बजे से लेकर 6 सितंबर को दोपहर 3:01 बजे तक है। ऐसे में उदया तिथि के आधार पर हरतालिका तीज का व्रत 6 सितंबर शुक्रवार को रखा जाएगा।
हरतालिका तीज के दिन यानी 6 सितंबर को सुबह में पूजा का मुहूर्त 6 बजकर 2 मिनट से 8 बजकर 33 मिनट तक है। इसके साथ ही प्रदोष काल यानी शाम के समय भी कई लोग पूजा करते हैं। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद आरंभ होता है। इसलिए प्रदोष काल 06:36 आरंभ हो जायेगा

सुयोग्य वर प्राप्त करने के लिए हरितालिका व्रत करती है.मोनिका बर्मन

धार्मिक मान्यता यह है की इस व्रत को करने से सौभाग्य, पारिवारिक सुख ,संतान का सुख ,चन्द्र दोष अगर बना हुआ है वह भी समाप्त होता है.हम परिवार के सभी महिलाएं मिलजुलकर घर में मीठा पकवान बनाती है.वही पकवान गौरी गणेश तथा भगवान शिव को अर्पित करती है .

वैवाहिक सुख के महत्व का प्रतीक है। रूपम सिंह

हरतालिका तीज दोस्ती, भक्ति और वैवाहिक सुख के महत्व का प्रतीक है , हम विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और कल्याण के लिए आशीर्वाद मांगती हैं,हमारे लिए यह त्योहार विशेष रूप से मायने रखते है।

कुंवारी कन्याएं भी एक अच्छे जीवनसाथी की कामना से हरियाली तीज का व्रत रखती हैं। रानी बर्मन

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हरियाली तीज का व्रत सबसे पहले राजा हिमालय की पुत्री पार्वती ने रखा था और इस व्रत के फलस्वरूप ही उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए थे. इसलिए कुंवारी कन्याएं भी एक अच्छे जीवनसाथी की कामना से हरियाली तीज का व्रत रखती हैं।

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